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सुखी शांत और पवित्र बनाया ।
लगातार तीस वर्ष तक दिव्योपदेश देने के उपरान्त ७२ वर्ष की आयु के अन्त समय स्वात्मस्थ हो गये और कार्तिक कृष्णा अमावस्या की पहली ( चतुर्दशी के वाद की) रात्रि को स्वाति नक्षत्र मे विहार प्रान्तस्थ मल्लिवशीय राजा हस्तिपाल की राजधानी मध्यमा पावापुर से अवशिष्ट चार अघालिया कर्मों का विनाश कर मोक्ष - लक्ष्मी को वरण किया था । इस तरह भ० महावीर स्वामी के ७२ वर्षों में एक भी क्षण उनका ऐसा नही गया जिस क्षण मे उनके द्वारा दूसरो का उपकार न हुआ हो । उनका जीवन वास्तव मे आदर्श जीवन था ।
कृतज्ञता
महावीर श्री ने ससार के प्रत्येक प्राणी के प्रति महान उपकार किया था, उनके अगणित उपकारो से जनता दवी जा रही थी इसलिए कृतज्ञतावश उस समय की जनता ने अपने उपकारी परमगुरु के मुक्ति लाभ की खुशी मे दीप जलाकर अपनी प्रगाढ भक्ति का परिचय दिया था, तभी से दीपावली का पावन त्यौहार भारत में प्रचलित हुआ जो कि आज तक महावीरश्री के उपासको द्वारा प्रतिवर्ष धूमधाम से मनाया जाता है ।
महावीरश्री की स्मृति मे वीर निर्वाणसवत् भी आज तक प्रचलित है ।
जय महावीर जय वर्द्धमान जय सन्मति
जय वीर
जय अतिवीर
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