________________
१४१
ऐसी क्रान्ति का बिगुल फूंका कि उनकी उपदेश सभा मे वे पुरुपो से कई गुणी अधिक पहुँचती थी और उनका दिव्योपदेश श्रवण कर आत्म-कल्याण मे विरत हो जाती थी । आज भी जितनी अधिक धार्मिकता स्त्रियो मे है, उतनी पुरुषों में नही है उन्ही की धार्मिकता से भारतीय सस्कृति अभी तक अक्षुण्ण बनी हुई है । जिसका सारा श्रेय भ० महावीर स्वामी को है ।
आश्चर्यजनक अतिशय
भ० महावीर ने ३० वर्ष तक लगातार तत्कालीन भारत के मध्य के काशी, कौशल, कौशल्य, कुसन्ध्य, अश्वष्ट, साल्व, त्रिगर्त, पचाल, भद्रकार, पाटच्चर, मौक, मत्स्य, कनीय, सूरसेन एव वृकार्थक नाम के देशो मे, समुद्रतट के कलिङ्ग कुरुजागल, कैकेय, आत्रेय, काबोज, वाल्हीक, यवन श्रुति, सिन्धु, गाधार, सूरभीरु, दगेरुक, वाडवान, भारद्वाज, और क्वाथतोय देशो मे एवं उत्तर दिशा के तार्ण, कार्ण, प्रच्छाल आदि देश-देशान्तरो मे भ्रमण किया । वे जहाँ जाते वहाँ विराट् धर्म-सभाएं की जाती, उन धर्म सभाओ मे लाखो-करोडो नर-नारी, पशु-पक्षी तक आकर बैठते और भगवान का दिव्योपदेश सुनते थे ।
स्वाभावत. प्रश्न उठता है कि उस समय तो आज सरीखे रेडियो और लाऊडस्पीकर नही थे, फिर भ० [महावीर स्वामी की आवाज सभा मे स्थित लाखो आदमियो तक कैसे पहुँचती होगी ?
प्रश्न वास्तविकता को लिए ठीक है पर जिनको इस प्रकार की शका होती है उनको ज्ञात होना चाहिए कि वर्तमान की अपेक्षा उस समय विज्ञान का अभाव नहीं था, उस समय भी किसी भिन्न प्रकार के ध्वनि प्रसारक या ध्वनिवर्धक साधन महावीरश्री के धर्म-सभा मे रहते थे जिन्हे जैन परिभाषा मे