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विक्रेताओ ने जिस प्रकार निरपराध मूक पशुओ को जबरदस्ती यज्ञो की होलियो में झोका है, उसकी करुण कहानी सुनने वालों के पास पत्थर का दिल चाहिये । धर्म तव देवता नही, दानव था । । वह विक रहा था-स्वरचित विरचित मत्रो की वोलियों के आधार पर !
"यज्ञो वधो न वध" "वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति यज्ञार्थ पशव सृष्टा स्वयमेव स्वयभुवा
यज्ञे मृताः स्वर्ग यान्ति इत्यादि उसके स्पष्ट उदाहरण हैं-नमूने है। __अन्ध श्रद्धालुओ या भोलेभालो को स्वर्ग और मोक्ष के टिकट बडे ही सस्ते मूल्यो पर बिक रहे थे। तात्पर्य यह है कि किन्ही स्वार्थी तत्त्वो के कारण धर्म तथा यज्ञादि क्रियाकाण्डो के नाम पर भारतीय वायुमण्डल हिसा की दुर्गन्धि से भर गया था। ___ सामाजिक परिस्थिति भी इतनी आतङ्कपूर्ण और पेचीदा हो गई थी कि उसके परिवर्तित होने के आसार ही नजर नही आते थे। धार्मिक अनुष्ठान तो सोलहो आने पापी-पडो की मुट्टियो मे वध हो गये थे। मनुष्य और देवो का सीधा सबध कराने वाले ये पुरोहित दलाल अपना स्वार्थ साधते तो कुछ आपत्ति नही भी हो सकती थी, परन्तु अपना अनिवार्य अस्तित्त्व प्रकट करते हुए जव यज्ञो में जीवित प्राणियो को होम देना इनके बाएँ हाथ का खेल हो गया तब दूसरी ओर इनका जात्याभिमान भी खूब फलने फूलने लगा। फलस्वरूप ऊँच-नीच की भावनाओ पर जातिवाद का भूत खड़ा कर दिया गया। शूद्रादि इतर जातियो पर अत्याचार और अनाचार के जो पहाड टूट सकते थे टूटे और वे बेवस भी उनके नीचे चकनाचूर होने लगे । नारी का व्यक्तित्व निराश्रय होकर चीखे मार रहा था। एक मात्र