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७८ ] . महावीर चरित्र। यहां भेनी ॥१.१४।। और यह कहकर उसको विदा किया कि " हमको दर्शन कराने के लिये उत्कंठा युक्त विद्याधरों के अधीशको शीघ्र लाइये।" इंदुने भी अपने नम्रीभूत मुकुटके किनारे पर हायाँको रखकर नमस्कार किया। पीछे अपने महान् विद्यारलसे दीप्तियुक्त विमानको बनाकर और उसमें बैठकर नीलकमल सदृश आकाश पर 'चला गया ।। ११५ ॥ इस प्रकार श्री अचंग कविकृतः वर्धमान चरित्रमें त्रिपिष्ट संभव - नामका पांचवां संग समाप्त हुआ ।
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छहास।
. कुछ दिनोंके बाद एक दिन प्रभापतिने वनपालसे सुना कि बाहर प्रशस्त वनमें विद्याधरोंका स्वामी अपने बल सहित आकर उतरा है । यह सुनकर हर्षसे उसको देखने के लिये वह निकला ॥ १ ॥ जन्नत और कठोर कंधाओंसे भूषित दोनों पुत्रोंके साथ २ राजा बहुत ही अच्छा मालूम पड़ता था। दोनों पुत्र ऐसे मालूम पड़ते थे मानों रानाकी ये दोनों भुनायें हैं। इनमेंसे पहला जो कि दक्षिणकी तरफ था मानों साधुजनोंके लिये, और दूसरा जो कि वाम भागमें था मानों शत्रुओंके लिये ना रहा है ॥२॥ प्रसिद्ध वंशोंमें उत्पन्न होनेवाले राजपुत्रोंके साथ २ राजा इनमें पहचा। मार्गमें ये राजपुत्र अपने अपने वाहनों पर सवार होकर जब वो चलने लगते उस समय उनके चंचल हो उटनेवाले हारोमेसे. निकले हुए किरण जाणसे सपूणे दिशायें प्रकाशित हो उठती थीं।