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... माया मर्गी . [६३ जिसके गर्मभारसे लांत होनेपर भी माता तीन - लोकको जीतनेकी इंछा करने लगी, तंथा सूर्यके सी र आनेपर मुख और नेत्र क्रोधसे लाल करने लगी। सपुत्रका जन्म होते ही रानाने पृथ्वीको " देहि " इस शब्दसे रहित कर दिया-अर्थात् इतना दान दिया कि जिससे पृथ्वीमरमें कोई याचक हीन रहा । तयासम्पूर्ण आकाश मंडलको आनंदवाने और सुंदर गीतोंके नादसे शब्दात्मक बना दिया ॥२३-२४॥ विद्याधरामें श्रेष्ठ नीलकंठने निनेंद्र देवकी बड़ी मारी पूजा करके और अपने गोत्रके महान् २ पुरुपोंकी अनुज्ञा-ले करके इस तेजस्वी पुत्रका नाम हयकंधर अश्वग्रीव सखा ॥२५॥ लक्ष्मीको प्रिय, कोमल और शुद्ध पादको धारण करनेवाला, लोगोंके नेत्रकमलोंको आनंद उत्पन्न करनेवाला, और कन्लासमूहको प्राप्त करनेवाला यह चालचंद्र दिन पर दिन बढ़ने लंगा ॥२६॥ एकदिन यज्ञोपवीतको धारण करके यह अश्वग्रीव गुफामें पल्यंक आसन माइकर बैठा। वहां पर इसने नव तक अच्छी तरह ध्यान करना शुरू भी नहीं किया कि इतने हीमें इसके सामने सम्पूर्ण विद्यायें आकर उपस्थित हो गई। अर्थात्-हयकंधरको शीघ्र ही समस्त विद्यायें सिद्ध हो गई ॥२४॥ इस तरहसे यह कृतार्थ होकर, सुरगिरिकी-मेरुकी शिखरोंपर जो चैत्यालय हैं. उनको प्रणाम करके और उनकी प्रदक्षिणा करके, तथा पांडुक शिलाकी पूजा करके, घरको लौट आया ॥२९॥हजार आरोंसे युक्त चत्रको अमोघशक्तिके धारण करनेवाले दंड औरखनको तया "खेत छत्रको इसने प्राप्त किया जिससे कि आधे भरतक्षेत्रको लक्ष्मीका
आधिपत्य भी इसको प्राप्त हुआ।मला पुण्यका उदय होनेपर क्या 'साव्य नहीं होता।२९ अत्यंत उन्नत और कठिन स्तनोंकी शोभा