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महावीर चरित्र |
निधान धर्मके स्वामी श्रीमान् आदि तीर्थकर श्री वृषभदेव निवास करते थे ||१०|| जिस समय ये वृषभदेव स्वामी गर्भ में आये थे त पृथ्वीपर इन्द्रादिक सभी देव इकट्ठे हुए थे। जिससे पृथ्वीने स्वर्गलोककी समस्त शोभाको धारण कर लिया था ॥ ५१ ॥ तथा उनका जन्म होते ही दिव्य-स्वर्गीय दुंदुमि बाजे बजने लगे थे, अप्सराएं नृत्य करने लगीं थीं, आकाशते पुष्पोंकी वर्षा होने लगी थी, मानों उस समय आकाश भी हंस रहा था ॥५२॥ उत्पन्न होते ही आनन्दसे इन्द्रादिक देवोंने महके ऊपर ले जाकर उनका क्षीर समुके से अभिषेक किया था ॥ ५३ ॥ मति श्रुत अवधि ये तीन ज्ञान उनके साथ उत्पन्न हुए थे। इनके द्वारा उन्होंने मोक्षके सभीचीन मार्गको स्वयं जान लिया था । इसीलिये ये स्वयंभू हुए ॥ ५४ ॥ उन्होंने कल्पवृक्षों का अभाव हों जानेसे आकुलित प्रजाको पदं कर्मका - असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, विद्या और शिल्पका उपदेश देकर जीवनके उपाय में लगाया था । इसीलिये वे कल्पवृक्षके समान हैं ॥ ५९ ॥ इनका पुत्र भरत नामका पहला चक्रवर्ती हुआ । यह समस्त भरतखंडकी पृथ्वीका रक्षक था और नवीन साम्राज्यसे भूषित था ॥ ५६ ॥ इसने चौदह महारत्नों की संपत्तिको प्राप्त कर उन्नतिका सम्पादन किया था । इसके घरमें नवनिधि सदा ही किंकरकी तरह रहा करती थीं ॥ ५७ ॥ जिस समय यह दिग्विजयके लिगे निकला था उस समय इसकी विपुल सेना के भार से उत्पन्न हुई पीड़ाको सहन न कर सकनेके कारण ही मानों पृथ्वी धूलिके व्याजसे- धूलिरूप होकर आकाश में जा चढ़ी थी ॥ १८ ॥ समुद्र तटके बनोंमें जो लताओंपर पल्लव लगे हुए थे वे पद्यपि भग्न हो गये थे