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महावीर चरित्र ।
इसके लक्षण है ॥ ३० ॥ तूने अभी तक काल्टन्वि भादिको प्राप्त नहीं किया है इसलिये तू पहले उनको प्राप्त कर और रागादिककं साथ मिध्यात्व बुद्धिका परित्याग कर ॥ ३१ ॥ बंध और मोक्षके विषयमें जिनेन्द्र देवका संक्षेपमें यह उपदेश है कि जो रागी है व कर्मों का बंध करता है, और जो वीतराग है वही कर्मोंस मुक्त होता है ॥ ३२ ॥ बंघ आदिक दोषोंके मूल कारण राग और द्वेप बताए हैं । इनके उदयसे ही सम्यक्तत्व नष्ट होता है ॥३३॥ रागादि दोषोंके कारण तूने जिस भवपरंपरामें भ्रमण किया है । हे सिंह ! तू उसको मेरे वचनोंसे अपने श्रोत्रको पात्र बनाकर सुन ॥३४॥
इसी द्वीपके (जम्बूद्वीपके) पूर्व विदेह में पुंडरीकिणी नामकी नगरी है | वहां एक न्यायी धर्मात्मा व्यापारी रहता था ॥ ३५ ॥ . एकवार उसके कुछ आदमिओं की एक टोली बहुतसा धन लेकर किसी कामके लिये कहीं गई। उसके साथ तपके निधि सागरसेन नामके विख्यात घर्मात्मा मुनि भी गये ॥ ३६ ॥ बीचमें डाकुओंने उम टोलीको लूट लिया । उस समय जो आदमी शूर थे वे मारे गये, जो डरपोक थे चे पास ही नगरके भीतर भाग गये || ३७ || मुनिशन दिग्मूढ़ हो गये - मार्ग भूल गये । उनको यह नहीं मालूम रहा कि कहां होकर किधरको जाना चाहिये। उन्होंने मधुवनके भीतर कांसी नामकी स्त्रीके साथ पुरुरवा नामके वनेचर (भील) को देखा ॥ ३८ ॥ यद्यपि दह भोल अत्यंत क्रूरपरिणामी था, तो भी उसने इन मुनिके वाक्योंसे अकस्माद घमको धारण कर लिया । साधुओंके संयोगसे ऐसा कौन है जो
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शांतिका - प्राप्त नहीं होता ? ||३९| उस डोकूने भक्तिसे बहुत दूर तक साथ जाकर उनको बहुत अच्छे मार्ग पर लगा दिया | और वे