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महावीर चरित्र । गर्भको धारण किया ॥ ४३ ॥ और समय पाकर उस सती प्रियंका महाराणीने भूपालको प्रीतिके उत्पन्न करनेवाले पुत्रका इस प्रकारसे प्रसव किया जिस प्रकार आनकी लता मनोहर पल्लवको उत्पन्न करती है । पुत्रका "नंद " यह नाम जगनमें प्रसिद्ध हुआ ॥४४॥ नंद अपनी नातिरूपी कुमुदिनीकी प्रसन्नताको बढ़ाता हुआ, उज्वल कांतिरूपी चंद्रिकाको मानो अपनी कला
ओंका बोध करानेक ही लिये फैलाता हुआ बाल चंद्रमाके समान दिनपर दिन वहने लगा ॥ ४५ ॥ ___ इसके बाद हर्पसे मानो अपने स्वामीको देखनकी इच्छास ही । खिले हुए पुष्प और नवीन पछवांकी भेंट लेकर वसंत ऋनुराग दूरसे आकर प्राप्त हुआ। और आकर मानो अपने परिश्रमको दूर करनेके ही लिये उसने वनमें विश्राम किया ॥४६॥ ऋतुरानने दक्षिण वायुको वहाकर वृक्षोंके पुराने पत्ते सत्र दूर कर दिये ! और वनको अंकरों तथा कलियोंसे अलंकृत, तथा मत्त भ्रमरोस व्याप्तकर दिया ॥ ४७ ॥ कुछर मुकुलित (अधखिले) अंकूरोस अंकित, जिसका भविष्यमें मेघ-सम्पत्तिसे सम्बन्ध होनेवाला है, खून सरल, और दानशील आमके वृक्षको चारों तरफसे घेरकरभ्रमरगण इसतरह उसकी सेवा करने लगे, जैसे किसी बड़ीमारी सम्पत्तिके स्वामी वननेवाले, सरल तथा दानशील बन्धुको घेरकर उसके मतलवी. बांधव सेवा करते हैं ॥ १८ ॥ अशोकका वृक्ष मृगनयनियोंके चरणकमलसे ताड़ित होकर निरंतर अपने मूल से ही मुकुलित कलियोंके गुच्छोंको धारण करने लगा । उन कलियोंसे वह लोगोंको ऐसा मालम होने लगा मानो उसके विलक्षण रोमांच