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पहला : सर्ग:
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दूसरे मुनियों की भी वंदना कर अपने घरको गया ॥ ५९ ॥
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राजाने शुभ लग्न श्रेष्ठ पुण्य नक्षत्र शुभ वार और सूर्यकी दृष्टि 'पूर्वको देखकर सामंत मंत्री और उनके नीचे रहनेवाले समस्त लोगों के साथ अनुपम अभिषेक करके बड़े भारी वैभवके साथ उस राज - कुमारको युवराज पद दे दिया || ६ || जिस दिन इस राजकुमारने गर्ममें निवास किया उसी दिनसे इसकी सेवामें तत्पर रहनेवाले राजकुमारोंको, समयके बतानेवालों को और दूसरे मुखियाओं को इस राजकुमारने निजको छोड़कर दूसरी हरएक प्रकारकी विश्वसे पूर्ण कर दिया । ठीक ही है । सज्जनोंके विषय में यदि कोई क्लेश उठानेका प्रयत्न करता है तो वह क्लेश उनके लिये क्ल्लवृक्षका काम देता है. ।। ६१ ।। इस राजकुमारकी दूसरे अनेक राजाओंके द्वारा दिये हुए क्षेत्रों को तथा अद्वितीय अनेक प्रकारके रत्नोंके करको ग्रहण करनेसे; किन्तु विपयोंका त्याग करनेसे दीप्ति बढ़ गई थी। जो विषय संसार और व्यसन - परम्पराके मूल कारण हैं, तथा जिनका सेवन असाधु लोग ही करते हैं ॥ ६२॥ जगन्में समस्त याचकोंको दान करनेवालोंमेंस किसीने भी ऐसी वस्तुका दान नहीं किया जो कि उसके पास हो - ही नहीं। भावार्थ - भान तक जितने दानी हुए, उन्होने समस्त याचकोंको दान किया; परन्तु वह दान ऐसी ही वस्तुका किया जो कि उनके पास विद्यमान थी क्योंकि अविद्यमान वस्तुका - दान ही किस तरह किया जा सकता है; परन्तु यह बड़ा आश्चर्य है कि इस राजकुमारने अपने शत्रुओं को जो अपने पास विद्यमान नहीं थी ऐसी भी वस्तुका भयका दान कर दिया
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