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महावीर चरित्र । प्रतिच्छायायें पड़ती हैं उनपर कमलकी अभिलापासे भ्रमरगण आ बैठते है। ठीक ही है-जिनकी आत्मा भ्रान्त हो जाती है उनको किसी भी प्रकारका विवेक नहीं रहता ॥२४॥ वहांके घरोक बाहर चबूतरोंपर लगी हुई हरित मणियोंकी किरणें घासक अंकुर जैसी मालूम होती हैं। अतएव उनके द्वारा बालमृग छले जाते हैं । पीछे यदि उनके सामने दूर्वा भी आती है तो उसको भी वे उसी शनासे चरते नहीं हैं ॥२५॥पद्मराग मणिके चमकते हुए कुंडल और कर्णफूलोकी छायासे जिनका मुखचंद्र लाल मालूम पड़ने लगता है ऐसी वहांकी स्त्रियोंको उनके पति 'कहीं यह कांता कुपित तो नहीं हो गई है। यह समझकर प्रसन्न करनेकी पेश करने लगते हैं। सो ठीक ही है क्योंकि कामसे अत्यन्त व्याकुल हुआ प्राणी क्या नियमसे मूढ़ नहीं हो जाता है ? ॥ २६ ॥ जहाँके निर्मला स्फटिकके बने हुए आकाशस्पर्शी मकानोंके ऊपरके भागपर बैठी हुई रमणीय रमणियोंको उस नगरके लोग कुछ क्षणके लिये इस तरह भ्रमके साथ देखने लगते हैं कि क्या ये आकाशगत अप्सरा हैं ॥ २७ ॥ नहांके महलोंके भीतरकी रत्नभूमिपर जिस समय झरोखोंमें होकर बाल सूर्यका प्रकाश पड़ता है उस समय मालूम होता है मानों इस मूमिको कुंकुमसे लीप दिया है
२४॥ सामने स्फटिककी मित्तियों में अपने प्रतिविम्बंको अच्छी तरह देखकर सपत्नीकी शंकासे वहांकी प्रमदाओंका चित्तचंचल हो उठता है।
और इसीलिये वे अपने पतियोंसे भी कोप करने लगती हैं।॥२९॥ नहाँके महलोंके शिखरोंपर मेघ आकर विना समयके (वर्षाके) ही मयूरोंको मत्त कर देते हैं, क्योंकि जब मेघ वहाँ आते हैं तब शिखरोंके