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२५४ ] महावीर चरित्र । .. ... आप ही विकशित हो जाती है ? || ८५. ॥ स्नेह रहित दशाक... धारक आप जगत्के अद्वितीय दीपक हैं। कठिनतासे रहिन है. अन्तरात्मा जिसकी ऐसे आप चिन्तामणि हो । पालवृत्तिसे : सम्बन्ध न रखते हुए आप मलयगिरि हो। और हे नाथ ! उष्णतासे. रहित आप तेजपुंन भी हो ॥ ८६ ॥ हे जगदीश ! क्षीरसागरके . . फेनपटलके पंकिजालके समानं गौर और मनोहर आपका यश अमृ.. तरशिश-चन्द्रके व्याजसे आकाशमें रहकर यह विचार करता है. : या बताता है कि इस अप्राप्त जानको क्षणभरमें मैंने कितना व्याप्त कर लिया ॥ ८७ ॥ इस प्रकार स्तुति करके देवगण - पुप्पोंसे भूपित हैं समीचीन नमेरु वृक्ष जहांपर ऐसे उसे महसे . भगवान्को मकानों के आगे बंध हुए कदलो बजाओंसे रुके हुए और . 'विमानोंके अवतार समयसे व्याप्त ऐसे नगरमें शीघ्र ही फिर वापिस ," लौटाकर ले आये ॥ ८८ ॥ " पुत्रके हर जानेसे उत्पन्न : हुई पोड़ा- खेद आप मातापिताको न हो इस लिये : पुत्रकी प्रकृति बनाकर-अर्थात् माताके निाट मायामय पुत्रको छोड़ . कर आपके पुत्रको मेरुपर लेजाकर और वहां उसका अभिषेक कर वापिस लाये हैं । " यह कहकर देवोंने पुत्रको माता पिताके सुपुर्द । किया ।। ८९॥ दिव्य वस्त्र आभरण माला विलेपन-चंदन लेप . . इत्यादिके द्वारा नरेश्वर-सिद्धार्थ राना तथा प्रियकारिणी-त्रिशलाकी .... पूजा कर और भगवान्के वज्ञ तथा नामका निवेदन कर प्रसन्न हुए, देवगण वहां नृत्य करके अपने अपने स्थानको चले :11.80 ॥ गर्मसे-जिस दिन गर्म में आये उसी दिनसे अपने कुलकी. लक्ष्मीको " चन्द्रमाकी कलाकी तरह प्रतिदिन बढ़ती हुई देखकर दशमें-जन्मसे दशमें: