________________
.२५० ]
महावीर चरित्र |
सुनाओं का अंतराल जिसका ऐसे कोईर देव तो तत्क्षण ऐसे होगये. मानों प्रसन्न जिन भक्ति जिसको दूर कर रही है ऐसा हृदत मोहला अंधकार है । अर्थात् निमणियोंकी काली प्रभा या उस प्रमासे काले पड़े हुए देव ऐसे जान पड़े मानों ये मोहरूप का ही हैं जिनको कि प्रकाशमान जिन भक्तिने हृदयमंसे बाहर निकाल दिया है || ६६ || देवोंके चारो तरफ दूर दूरसे आई हुई वेगकी - विमानके वेगकी पवनसे खिचकर आते हुए मेन विमानों में जड़हुए रत्नों से - त्नोंकी किरणोंसे बने हुए इन्द्र धनुषकी लक्ष्मी -शोभाको प्राप्त करने की इच्छासे मानों आकाशमें उनका शीघ्र ही अनुमरण किया ॥ ६७ ॥ विचित्र मणिपय भूषण बंध और मान- विमानोंको धारणकर उतरकर आते हुए उन देवोंसे जब समस्त दिशायें घिर गई तब लोग उसकी तरफ आश्चर्यसे देखने लगे । उन्होंने समझा कि आकाश बिना मीतके सहारे ही किसीके बनाये हुए सभी चित्रोंको धारण कर रहा है ॥ ६८ ॥
.
इसी समय चन्द्र आदिक पांच प्रकारके ज्योतिषी देव जिनका !! कि अनुपरण सिंह शब्दसे- सिंहका शब्द सुनकर शीघ्र ही आकर " मिले हुए अपने भृत्योंके साथ चमरादिक भवनवासी देव भी आकर प्राप्त हुए ॥ ६९ ॥ पटह-मेरीके शब्दसे बुलाये हुए सेवकोंसे भर दिया है समस्त दिशाओंका मध्य जिन्होंने ऐसे व्यंतरोंके अधिपति मी उस नगर में आकर प्राप्त हुए। आते समय जिन विमानों में वे सवार थे उनके वेगसे उनके ( व्यंजक ) कुंडल हिलने लगते थे जिससे उनमें लगी हुई मणियोंकी युतिसे उनका गंडस्थल लिप जाता था ॥ ७० ॥ पुत्रजन्मका समाचार पाते ही सिद्धार्थने
"
.