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महावीर चरित्र ।
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Mains
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मुख श्याम होगये । उस समय वे दोनों स्तन ऐसे जान पड़ते थे. मानों गर्भस्थत बालकके निर्मल ज्ञानसे -प्रणुन्न- खिन्न अथवा भांगनेके लिये व्याकुल किये गये हृदयगत मोहरूप अंधकारंका वमन कर रहे हैं ॥ ५४ ॥ उस नवांगीका शरीर का सब पीला पड़ गया। मालूम होता था मानों निकलते हुए फैलते हुए यशने उसको धवल वना दिया है । उस देवीका अनुवण-अप्रकट उदर पहले त्रिवली पढ़नेसे वैसा नहीं शोषता था जैसा कि बढ़ने से शोभने लगा । ॥ ११ ॥ जिन भगवान्में लगी हुई अपनी भक्तिको प्रकाशित करता हुआ सौधर्म स्वर्गका इन्द्र पटलिकामें रखे हुए क्षौम-अंग-राग मनोज्ञ मणिमय भूषणोंको स्वयं धारण कर तीनों कालं आकर प्रियकारिणीकी सेवा करता था || १६ || तृष्णा रहित उस गर्भः स्थको धारण कर प्रियकारिणी गर्मपीड़ा से कभी भी बाधित न हुई । कुछ दिन बाद भूपालने यह वंश कम है ऐना समझकर चिदुधदेवों या विद्वानों से पूजित त्रिशलाकी पत्रन क्रिम की ॥ ५७ ॥
कुछ दिनके बाद उच्च स्थानपर प्राप्त समस्त ग्रहोंक लानको
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जैसा काल आपड़ा वैसे ही समय में रानीने चैत्र शुक्ला त्रयोदशी सोमवारको रात्रिके अंत समय में जब कि चन्द्रमा उत्तरा फाल्गुनियर था जिनेन्द्रका प्रमुख किया ॥ ५८ ॥ प्राणियोंके हृदयोंके साथ साथ समस्त दिशायें प्रपन्न होगई । आकाशने विना धुलें ही निर्मलता धारण कर ली। उसी समय देवोंकी की हुई मत्त भ्रमरोंसे व्याप्त पुष्पों की वर्षा हुई। और दुंदुभियोंने आकाशमें गम्भीर शब्द किया ॥ ५९ ॥ संसारको छेदन करनेवाले तीन लोकके अद्वितीय स्वामी उस प्रसिद्ध : महानुभाव तीर्थकरके उत्पन्न होते ही इन्द्रोंके कभी न
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