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________________ PARA सत्रहवाँ सग। monom, minanananana करनेवाले बुध-विद्वान् रहते हैं। आकाश सवृष-वृष नक्षत्र युक्त है नगरं भी. स्वर-धर्मसे या बैलोंसे पूर्ण हैं। आंकाश सतार-तारागणोंसे बात है, नगर मी सतार चांदी और मोतियोंसे भा हुआ. अथवा सफाईदार है ॥ ७ ॥ जहां पर कोंटके किनारों पर लगी हुई उ.रुगमणियों पन्नाओंकी प्रमाके छायामय पटलोंसे चारों तरफ व्याप्त जलपूर्ण खाई दिनमें मी बिल्कुल एमी मालम पड़ती है मानों इसने सन्ध्याकालीन श्री-शोमाको धारण कर रखा है। घोर-चोई हई या जिलों की हई इन्द्रनील मणियोंकी बनी हुई भूमिरर आहारके लिये सनाये गये या स्कन्वे गाये नीलकमल समान वर्णके कारण एकमें एक मिल गये हैं-पहचान नहीं सकते कि कमल कहां पर रक्खे हैं। तो भी, चारों तरफसे पड़ते हुए भ्रमरोंकी झंकारसे वे पहचानमें आनात हैं ॥९॥ जो मलें. मनवाला होता है वह दूसरोंको जीतना नहीं चाहता; पर, यहांकी मेणि भले मनवाली होकर भी कामदेवको जीतना चाहती । थीं। जो.निम्तेन है.बह कांतियुक्त नहीं हो सकता; पर यहांकी मणियां निस्तजिताम्बुनरुच् (निस्तन हो गई है कमलममान कांति निनकी ऐमी) होकर भी चन्द्रप्रमा यी-अर्थात् वे कमलोंकी कांतिको निम्न कानेवाली और चंद्र समान कांतिकी धारक थीं। यहांकी रमणी'वर्षाऋतुरूप नहीं थीं तो भी नवीन पयोवरों (स्तनों दूसरे पक्ष मेघा)को धारण करनेवाली थी । और नदीप न हो कर भी उस (शारादिरससे युक्त; दूसरे पक्षमें रामल) थीं॥१०॥ इस नगरक नागरिक पुरुष और महल दोनों एक सरीखे मालूम पडत थे। क्योंकि दोनों ही अत्यंत उन्नत, चन्द्रमाक्री किरणजालके ..
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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