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________________ २३० ] महावीर चरित्र | " उसका तीक्ष्ण हथियार भी केवल निप्फल ही है। उसी तरह, जो मनुष्य अपनी चर्या में विषयोंमें निरत-तल्लीन रहता है उसका : बढ़ा हुआ भी श्रुत व्यर्थ ही है ॥ १० ॥ विबुधों विद्वानों या देवोंके द्वारा पूजित, अंधकारको दूर करनेवाली, तथा जिससे अमृत टपक रहा है ऐसी मुनिराजकी वाणीके द्वारा निकट भव्य इस तरह, प्रबुद्ध हो जाता है जैसे लोक में शशिरशिर चन्द्रमाको किरणसे पद्म प्रबुद्ध - विकशित हो जाता है ॥ ११ ॥ अनेक प्रकारके गुणोंस युक्त, अर्चित्य, अद्भुत, और अत्यंत दुर्लम, रत्नके समान मुनिवाक्योंको दोनों कणोंमें धारण कर भव्य जीव जगतमें' 'कुनार्थ हो.. जाता है || १२ || अवधिज्ञान ही हैं नेत्र जिनके ऐसे व मुनिशन तत्वज्ञानी राजा नंदुरको पूर्वोक्त प्रकारसे उसके पूर्व भवको सिंहसे लेकर यहां तकके भवोंको तथा पुरुषार्थ तत्वको भी अच्छी तरह बताकर विरत हो गये ॥ १३ ॥ झरते हुए हैं जल बिन्दु जिसमें तथा चन्द्रमा की किरणजालसे सम्बन्ध हुई चन्द्रकांत मणि मिस प्रकार शोभाको प्राप्त होती है उसी प्रकार मुनिराजके वचनों को धारण कर पवित्र हर्षके अशुओंको बहाता हुआ नन्दन राजा भी. शोभाको प्राप्त हुआ || १४ || भक्तिके प्रप्तारसे गद्गद हो गया है. शरीर जिसका ऐसा वह राजा मुकुटके ऊपर किनारे पर मुकुलित करपल्लवोंको लगाकर नमस्कार कर इम तरहके वचन बोला ॥१५॥ ॥ जिस प्रकार जनताके हितके लिये विचित्र मणिगणौकोंछोड़नेवाले समुद्र जगत् में विरल हैं, उसी तरह भक्त जनताके:हितके लिये प्रयत्न करनेवाले मृति भी विरल - दुर्लभ हैं ॥ १६ ॥ इसमें भी प्रकाशमान हैं अवधिज्ञान रूप नेत्र जिनके ऐसे मुनि तो . AAVAJ
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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