________________
२२२ ]
महावीर चरित्र। . .... दूसरे केवली ही पूर्ण और उत्कृष्ट केवलज्ञानको प्राप्त करते हैं. : ॥ १५९ ।। चूड़ामणिकी किरणनालसे युक्त तथा किसलय नवीन पल्लबके रूपको धारण करनेवाले हैं का-स्त जिनके ऐसे इन्द्र जिनकी वंदना करते हैं, जिसके भीतर तीनों जगत् निमग्न हो जाते हैं ऐसे अपने ज्ञानके द्वारा अनुपम, जिन्होंने संसार समुद्रको पार कर लिया है, जिन्होंने चंद्र समान विशद निर्मल यशोराशिके द्वरा दिशाओंको श्वेत बना दिया है, ऐसे भगवान् उत्कृष्ट आयुकी : अपेक्षा कुछ कम एक कोटि पूर्व वर्ष पर्यंत भव्य समूहसे वैटित हुए विहार करते हैं॥१६०॥ जिसकी आयुकी स्थिति अंतर्मुहूर्तकी रह गई . है, और इसीके समान जिसके वेदनीय नाप और गोत्र कर्मकी स्थिति . रह गई है, वह जीव वचनयोग दूसरे मनोयोग तथा अपने वादर काययोग भी छोड़कर सूक्ष्मरूप किये गये काययोगका आलम्बन लेका. ध्यानके बलसे अयोगताको प्राप्त करता हुआ और कुछ काम नहीं.. करना केवल सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाति ध्यान ही करता है ॥१६१-१६२॥ आयुर्मकी स्थितिसे यदि शेष तीन कर्माकी-वेदनीय नाम, गोत्रकी स्थिति अधिक हो तो उन तीनोंकी स्थितिको आयुको स्थितिके समान करनेके लिये वह योगी समुद्घात करता है ।।१६॥ अपनी आत्माको चार समयोंमें निर्दोष दंड, कपाट, प्रतर, और लोकपूर्ण तथा इतने ही-चार-ही समयोंमें आत्माको उपसंहा-संकुचित-शरीराकार करके फिर पूर्ववत् तीसरे ध्यानको करता है ॥१६४॥ इसके :: बाद.वह केवली उत्कृष्ट व्युपरतक्रियानिवृत्ति ध्यानके द्वारा कोकी शक्तिको नष्ट कर पूर्ण अयोगताको प्राप्त कर मोक्षको प्राप्त करता
...
.