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२०४] . महावीर चरित्र । (सत्य, अमत्य, उभय; अनुम), चार बचनयोग (सल्प, अमत्य .. उभय, अनुभय), सात काययोग (औदारिक, वैक्रियिक, आहारतः औदारिकमिश्र, वैकियि कमिश्र, आहार मिश्र, कार्माण) ॥६६॥ पांच बंधके कारणों से मिथ्यादृष्टिके ये सबके संब रहते हैं। इसके आगेके तीन गुणस्थानोंमें-पासादन, मिश्र, और असयतमें मिथ्यात्वको छोड़कर बाकीके चार बंधके कारण रहते हैं। पांचमें देशविरत गुणस्थानमें मिश्ररूप अविरति-कुछ विरति कुछ अविरति रह जाती : है। छठे गुणस्थानमें अविरति भी सर्वथा छूट नाती है। यहां पर केवल प्रमाद कपाय और योग ये तीन ही. बंधके कारण रह ज.ते : हैं। ऐन- प्राज्ञपुरुषोंने कहा है ॥ ६७ ।। इसके आगे सातवें आठवें । नौवें दंशवे इस चार गुणस्थानों में प्रमादको छोड़कर बाकी के दो कषाय और योग बंधके कारण रह जाते हैं। फिर उाशात कपाय · · क्षीणकषाय और सयोगकेवलीमें - कषाय भी छूट : जाती है और केवल योग ही बंधका कारण रहनाता है। चौदहवा : गुणस्थानवाले निनप्रति भगवान् योगसे रहित हैं अतएव वे बंधन .. क्रियासे भी रहित हैं। क्योंकि बंध का कारण योग हो जानेपर फिर बंध किस तरह हो सकता है ॥ ६८॥ हे रानन्। यह जीव कषायंयुक्त हो कर कर्मरूप होने के योग्यं जिन पद्दलोंको... 'निरंतर अच्छी तरह ग्रहण करता है उसीको निन· भगवान्ने बंध :
कहा है ।।६९॥ उदार -बोध बाले-पर्वज्ञने संक्षेपसे प्रकृति, स्थिति, 'अनुमाग और प्रदेश इस तरहसे चार भेद बता कारणसे जीव जन्म मरणके वनमें अतिशय भ्रमण करता है ॥७॥ प्राणियोंके प्रकृति और प्रदेश ये दो बंध तो योगके निमित्त होते :