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२०२] . . महावीर चरित्र ।
imminimimini हैं । जहां सिद्धोंका निवास है उस महलपर चढ़ने की इच्छा रखने : वाले भन्यको इनके सिवाय दुमरी कोई भी सीढ़ियां नहीं हैं। ५३ ॥ उत्कृष्ट मनोगुप्ति, एपगां आदिक . तीन समिति-पणा आदान निक्षेण, उत्सर्ग, प्रयत्न पूर्वक देखी हुई वस्तुका भोजन और पान, इन पांचोंको सत्पुरुष पहले अहिंसनाकी भावनायें बताते हैं । ।। ५४ ॥ क्रोध, लोभ, भीरुता और हास्यका त्याग तथा सुत्रके : अनुमार भ पण, विद्वान् पुरुप इन पांचोंको सत्यत्रत की भावना बतात: हैं ।। ५५ ॥ विमोचित या शुन्य गृहमें रहना, रोकना, साधर्मियोंसे कभी भी विसंवाद-झगड़ा अच्छी तरहसे मिक्षान्नकी शुद्धि रखना, ये पांच अत्रौर्य बाकी भावनायें हैं ॥६६॥ शून्य मकान आदिकमें न रहना, दूसरा जिसमें
रह रहा है उस स्थान में प्रवेश करना, या दूसरे को रोकना, दूसरे की.मा · क्षीसे भिक्षान्नकी शुद्धि करना, सहधर्मियोंसे विसंवाद काना ये पांच • अचौर्य महात्र के दोप हैं ॥१७॥ स्त्रियोंकी रागस्था आदिक सुननेसे. . विरक्त रहना, उनके सौंदर्यके देखने का त्याग, पूर्व कालमें मो. . स्तोत्साके सरणका त्याग, पौष्टिक और इष्ट आदि. रसोंका त्यं गः .. आन शरीरके संस्कार करने का त्याग, ये पांच ब्रह्मवय वाकी भाव
· नायें बताई हैं ।। ५८ ॥ समस्त इन्द्रियोंके मनोज्ञ और अमनोज्ञ. • 'पांचों विषयों में क्रमसे राग और द्वेषको छोड़नेको परिग्रह. त्यागः
व्रतकी पांच भावनायें बताई हैं ॥ ५९ ॥ संसारके निवाससे जो.. चकित-मयमीत है उसको इस लोक और परलोकमें हिमादिकंक
विषयमें अपाय और अवद्यदर्शनको माना चाहिये । अथवा अमेह : - बुद्धिके द्वारा यह भाना चाहिये कि हिंपादिक ही वयः
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