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बारहवाँ सग |
बारहवां सर्ग ।
दूसरे द्वी घातकी खंड में पूर्व मेरुकी पूर्व दिशा में सीता नदी के उत्तर तड़के एक भाग में बसा हुआ कुरुभूमिं कुरुक्षेत्र के समान प्रसिद्ध कच्छ नामका एक देश है || १ || इस देश में विद्याधरोंका निवासस्थान और अपने तेजसे दूसरे पर्वतों को जीतनेवाला रौप्य - विजयाचे पर्वत है। यह बड़े योजनों से पच्चीस योजन ऊंचा और सौ योजन - तिरछा चौड़ा है ॥ २ ॥ कहने में नहीं आसके ऐसी सुंदर रूप- संपत्तिको धारण करनेवाले विद्याधरोंका में निवासस्थान हूं इम मदसे अवलित जो पर्वत अपने अग्रभागों से मेवों का सर्श करनेवाले काश 'समान- शुभ्रं महान् शिवरोंके द्वारा मानों स्वर्गकी हसी कर रहा है ॥ ३ ॥ धुली हुई - जिनका पानी उतर गया है ऐमी तलवारकी "किरणोंकी रेखाओंके समान जिनका समस्त शरीर काला पड़ गया है ऐसी अभिसारिकायें जहां पर दिनमें इधर उधर आकाशमें घूमती
- उस समय वे ऐसी मालूम पड़ती हैं मानों मूर्तिमती रात्रि ही हो ॥ ४ ॥ उसके शिखरका भाग बहुत रमणीय है तो भी देवाननाय वहां विल्कुल विहार नहीं करती। क्योंकि विद्यधरियोंकी - अनन्यसाम्य - कोई भी जिसकी समानताको धारण नहीं कर सकता ऐसी कांतिको देखकर वे वहां अत्यंत लज्जित हो जाती हैं ||५|| नहीं रमणियां विद्याओंके मह.नं प्रतापसे अपने अपने शरीरों को 'छिना देती है- अदृश्य हो जाती हैं। परंतु उनके श्वासकी वायुकी गंधसे आई हुई वहां उड़ती हुई भ्रमरपंक्ति अतिनूढ़ - धोखे में पड़े हुए उनके पतियोंको जाहिर कर देती है - यह सूचित कर देती है.
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