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महावीर चरित्र |
१५६ ] मायाका मन कर शौच ॥११॥ हृदयको शम-शांति (या न होना
से
अनको शांत
॥ ४४ ॥ ज्ञान-रक्षन
पूर्व
को
करने
वाला तू यदि दूसरोंके
से
होगा तो ते शौर्य यशोमहिमा हग तीनों लोकोंको त्रिन कागा ॥ १२ ॥ का पांच गुरुओंको ( त सिद्ध उवाध्याय सर्व ऋतुओंको) प्रम किया करो वह अनुपम की सिद्धिका हेतु है | किंकी इन पंच नमकारको एल
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दूर करता है, प
क्लोका का निर्ज करना है और रोकता है-वीन रोकता है-मंत्र करता है। दर्शन
नहीं
घर
कि यह अत्यंत वृल्तर संकर से तारनेवाला है ॥ ४९ ॥ तीन राषों (माण किया, किनको विक्कू दूर का ब्रोंकी नियमसे मा रक्षा कर शरीर जो हमारी बुद्धि यी हुई है उन्को छोड़ अनि
के मित्रनेले ये तीन (सम्बन्दुद्दीन, सुम्पन सम्वारित्र) हो नांदे निश्चय समझ कि इन दोनों ममूह ही मोक्षक हेतु-कारमार्ग है १॥ तू निंन ऐसा प्रयत्न का कि सिल तो हृदय कष्ट विशुद्धि हो । अपने हितके जान लेनेवाले यह निश्चय सन्झ कि अब तेरी क्युकी स्थिति सिर्फ एक नहीनाकी चाकी रही है ||१६|| तीनों काण (मन, वचन, काय) की विविध अपने पापयोगको दूर कोषिकाको प्रस कनेका तू निर्मक सनाधिको उल्लेखनावरणको पूर्ण करनेके लिये जब तक आयु है त तरके लिये अन्न धारण क ॥ १७॥ है.
सम्