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१४४ ] .... महावीर चरित्र। ........ आदीश्वर भगवान्की संतानके संतान में होनेवाले पुत्रके मुखकमलके देखनेतक गृहस्थाश्रममें निवास करनेवाले. प्राचीनों-वनोंकी नो कुलकी मर्यादा प्रसिद्ध है उसको अर्थात् पुत्र होनेतक घरमें रहनेकी. जो हमारे कुलमें रीति चली आती है उसको मैंने विफल कर दिया-तोड़ दिया ।। ५४ ॥ अतएव क्रमानुसार अनं भी मैं दिग-- म्बरोंकी पवित्र दीक्षाका अनुगमन करता हूं। तुम्हारा स्नेह दुस्त्यन, है-कठिनतासे भी नहीं छूट सकता है तो भी मोक्षमुखकी स्पृहावांछासे मैं उसको छोड़ता हूं॥६५॥ वह पुत्रवत्सल प्रजापति इस तरह कहकर दोनों पुत्रोंके मुकुटोंकी किरणरूप रस्सीसे उसके पैर बंधे हुए थे तो भी तपोवनको चल गया । जो मध्य प्राणी हैं, जिनकी मोक्ष होनेवाली है उनको कोई भी निबंधन-रोकनेवाला : • नहीं होता ॥ १६ ॥ नितेन्द्रियोंके अधीश्वर यथार्थनामा पिहिताः
श्रव (कर्मोके आश्रवको रोकनेवाले ) मुनिके चरणोंको नमस्कार करके उसने-प्रजापतिने शांत मनवाले सातसौ राजाओं के साथ मुनियोंकी उन्कृष्ट धुरा-अग्रपदको धारण किया ॥ १७ ॥ जैसा. आगंममें कहा है उसी मार्गके अनुसार अत्यंत कठिन उत्कृष्ट
और अनुपम तपको करके प्रजापतिने आगे कौके पाशके बंध. नको दूर कर उपद्रव रहित श्री-केवलज्ञानादि विभूतिसे युक्त : सिद्धि-मुक्तिपदको प्राप्त किया ॥१८॥
कुछ समय बीत जानेपर एक दिन माधवने देखा कि पुत्रीको यौवनकी सम्पत्तिने अभिषिक्त कर स्क्खा है । इससे. वह बार बार इस तरहकी चिंता करता हुआ खिन्न हुआ कि इसकी दीप्तिके सदृश-थोग्य अतिश्रेष्ठ वर कौन हो सकता है।