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महावीर चरित्र |
शांति की शाख
नहीं सकता; तो भी जवकि उससे पार करदेने |ल| जिनशासनं । जहाज मौजूद है तब संसार में ऐसा कौन सचेतन - समझदार होगा जो कि विषयोंकी इच्छासे वृथा ही दुःखी होता हुआ घरमें ही रहनेके लिये उत्साह करे ॥ ४१ ॥ जिसके रागका प्रसार नष्ट हो गया है ऐसे जीवको जो आत्मामें ही स्थित सुख मिलता है क्या उसका एक अंश भी जिसका परिपाक दुःख रूप है ऐसी मोहरूप अग्निके निमित्तसे जिनका हृदय संप्त हो रहा है उनको मिल सकता है ? ॥ ४२ ॥ तात्विक यथार्थ निनोक धर्मकी अवहेलना करके जो विषयोंका सेवन करना चाहता है वह मूर्ख अपने जीवनकी तृष्णासे हाथमें क्खे हुए अमृतको छोड़ कर विष पीता है ॥ ४३ ॥ जिस तरह वृद्धावस्थाके पंजे में पड़ा हुआ -नवीन यौवन फिर कभी भी लौट कर नहीं आता है, उसी तरह निश्चित-नियमसे आनेवाली मृत्युके निमित्तसे यह आयु और आरोग्य प्रतिक्षण नष्ट हो रहे हैं ॥ ४४ ॥ संशर में फिर-बार चार जन्म लेनेके फ्रेशको दूर करनेमें समर्थ अत्यंत दुर्लभ सम्पत्वको पाकर मेरे समान और कौन दूसरा ऐसा प्रमत्तबुद्धि होगा जो कि. - तपस्या के विना अपने जन्मको निरर्थक गरमावे ||४५ || जब तक यह बलवती जरा- वृद्धावस्था इन्द्रियोंके बलको नष्ट नहीं करती है तब तक हंसके नीरक्षीर न्यायकी तरह मैं यथोक्त शास्त्रमें कही हुई विधिके अनुसार ली हुई तपस्या के द्वारा शरीरसे और आयुसे सब निष्कर्ष निकाल लेता हूं" ॥ ४६ ॥ उस उदार - बुद्धि प्रजापतिने 'चिरकाल तक ऐसा विचार करके उसी समय हर्पसे इस समाचारको सुनानेकी इच्छासे दोनों पुत्रोंको बुलाया । बलभद्र और केशवने
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