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महावीर चरित्र |
विकार - धूलिके, विकार उड़ने आदिके प्रसारको दूर करनेवाले उत्तम मेघों में ही पाई जाती थी या उत्पन्न होती थी ॥ २० ॥ पृथ्वीपर जिनकी स्थिति अलंघनीय है जो प्रशस्त वंशवाले हैं तथा उन्नतता धारण करनेवाले हैं ऐसे भूधरोंमें ही सदा विपक्षता रहती थी और उन्ही में दुर्भागंगति निश्चित थी ॥ २१ ॥ वहाँपर धनिक और जलाशय या समुद्र समान थे। दोनोंही-अनूनसत्व ( बहुतसे जंतुओंको धारण करनेवाले; दूसरे पक्षमें बड़े भारी तत्त्व गुणको धारण करने वाले ), बहुरत्नशाली - बहुतसे रत्नोंको धारण करनेवाले, महाशय ( खूत्र गहरे; दूसरे पक्षमें उत्कृष्ट विचार वाले ), धीरता ( स्थिरता दूसरे पक्ष में आपत्तियोंसे चलायमान न होना से परिष्कृत, जिनमें बड़ी मुशिसे प्रवेश किया जा सके ऐसे थे । परन्तु जलाशयों या समुद्रोंने प्रसिद्ध दुर्गाहतासे धनिकों की स्थिति धारण कर रक्खी थी || २२ || कलाघरों में से एक चंद्रमा ही ऐसा था जिसमें प्रदोष ( रात्रिका पहला पहर; दूसरे पक्षमें प्रकृट दोप ) कर सम्बंध पाया जाता था । पृथ्वीपर जितने लक्ष्मी निवासस्थान थे उनमेंसे एक महोत्पल ( महान् कमल) ही ऐसा था जिसमें जल स्थिति (जलमें रहना; दूसरे पक्षमें जड़ता - मूर्खता की स्थिति-सम्बंधक्योंकि श्लेशमें ल और ड में भेद नहीं माना जाता ) तथा मित्रत्रल ( सूर्यके निमित्तसे दूसरे पक्षमें सहायकों का बल) से विजृंभण (खिलना दूसरे पक्षमें बढ़ना) पाया जाता था ॥ २३ ॥ चारु- सुंदर फलोंमें सुविप्रिय (उत्पत्ति में प्रिय; दूसरे पक्षमें अच्छी तरह प्रतिकूल)
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१.. पक्षरहितपना | कवि समय के अनुसार पर्वतोंका इंद्रके द्वारा : . पक्ष कांटे जानेका वर्णन किया जाता है ।