________________
१२८ ] महावीर चरित्र । : नको और विद्याधरोंको अश्वग्रीवके नयध्वनको बाणों के मारे गिरा दिया ॥६२॥ इधर अश्वग्रीव अकीर्तिकी सारी सेनाको जीतकर आगे हुआ। उसने धनुपको खींचकर उससे आकाशको आच्छादितः करनेवाली वाणोंकी वृष्टि की ॥६॥ उसको अपना सहित । निर्मय अकीर्तिने हद धनुषको विना प्रयत्नके चढ़ाया । जो शुर। होता है उसको युद्धमें किसी तरहका संभ्रम नहीं होता. ॥६॥ अपने प्रभाव-देवी शक्तिसे धनुषको खींचकर वेगसे उसपर बाणको चढ़ाकर इस तरह फुर्तीसे उसको छोड़ा जिससे कि एक ही बाण:: पंक्ति-गुण-कमसे असंख्याताको प्राप्त करने लगा-एक ही बाणके : असंख्यात बाण होने लगे ॥ १५ ॥ निनके आगे-सिरपर अपने नामके अक्षर खुदे हुए हैं और जिनके चारो तरफ पंख लगे हुए हैं. ऐसे बाणोंसे उसने सद्वंशवाली लक्ष्मीलनाके साथ साथ उसकी जंजाकी वंशयष्टिको मी मूलमें से छेद दिया॥६६॥ अश्वग्रीनने क्रोधसे उसकी विजयरूप अद्वितीय लक्ष्मीकी लीलाके उपधान (तकियां ) के समान दक्षिण मुनामें जिसमें चञ्चल कंकपक्ष लगा हुभा है ऐसे . तीक्ष्ण-बाणको छेद दिया ॥६७॥ लम्बे या मुड़े हुए एक ही बाण
से अर्ककीर्तिके छत्र और हाथीपर लगे हुए झण्डको छेदकर दूसरे, .' बाणसे मुकुटके ऊपर लगे हुए प्रकाशमान-चारोतरफ.. जिसकी ::
किरणे निकल रही हैं ऐसे चूड़ामणि रत्नको उपाट डाला ॥६॥ अर्ककीर्तिने बलसे उद्धत हुए अश्वग्रीवके धनुपके अग्रभागको माले से छेद दिया। उस निर्भय युद्ध धुरन्धरने भी उसको-टूटे हुए धनुषको छोड़कर उसपर भालेका प्रहार किया ॥ १९ ॥ वेगसे छोड़े हुए बाणोंकी परम्परासे कवच या पराक्रमके :