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१२६.1 महावीर चरित्रं । . . . . . .
ima......... भीतर अग्नि छिपी रहती है ऐसी अरणीमें बनीमें जन्म लेनेवाली: • बहिने शर पंरपर पड़े हुए उन समस्त मा वीरोंको जला दिया प्रशस्त कर्म करनेवालोंको कौन नहीं अपनाता है ॥४९॥ उन दोनों ही सेनाओंके गर्विष्ठ हाथी घोड़े पदाति और रयोंके समूहोंका आपसमें भिड़कर यमरानकी उदरपूर्तिके लिये चारों तरफसे युद्ध हुआ ॥५०॥ हरिस्मश्रु नामका अश्वग्रीवका मंत्री जो कि रथके विषयमें आद्वितीय वीर था स्थमें बैठा हुआ ही सेनाका संचालन करता और वहींसे उस धनुर्वरने प्रति पक्षियोंकी सेना
और आकाशदोनोंको एक साथ वाणों के मारे आच्छादित कर दिया ॥५१॥ मालोंके मारे प्रत्येचाओंके साथ
सुभटोंके शिरोंको भी उड़ा दिया। हाथियोंकी घटाओंके साथ .. महारथोंकी विशेष व्यूह रचनाको इसतरह-तोड़ दिया. जिस तरह .. कच्चे घड़ेको जल फोड़ देता है ।।१२।। मंत्रीको महान् वाणवृष्टि
के छोड़ते ही छत्रोंके साथ २ झंडे गिर गये, हाथियों के साथ साथ :: · खाली (जिनके ऊपर सवार नहीं थे ऐसे) घोड़े त्रस्त हो गये, सूर्यके;
प्रकाशसे युक्त दिशायें नष्ट हुई दिशाओं में अंधकार छा गया ...॥.५३ ।। अति शुद्ध आचरणवाले ( श्लेवसे शुद्ध आचरणका ': अतिक्रम त्याग करनेवालाः) अथवा ठीक.गोलाईको लेकर : मंत्रीने
अतिशुद्ध अनेक बाणोंसे विष्णुके त्रिपिष्टके चल सेनाको इधरउधरसे इस तरह: संकोच लिया-घेर लिया जिस तरह रात्रिमें चंद्रमा अपने करकिरणों से: कमलोंको संकोचलेता है.॥ ५४.॥ इस तरह उस भीमको अपने बाहुवीर्यका विस्तार करते हुए देखकर उसका वध.