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________________ आठ मार्ग। mina..... की कांति शनाक मेत्र समान है एमा महान् गहन्धन हि:वक समान और हिमगिरि नामक हाथीपर प्रकार हुआ जिसमें वह एसा मान पक्ष मानो विन्ध्यात्र जार का नेत्र का है। विस तरह प्रतनाने वित्रिप्रवाशाशनादीधि-दामाकाशमें सूर्यको वा अवित होती है उमी नाह अनेक प्रकार हैविचाराने धारण कर समगे ना गइननो पार 'घाकर आताशमें लियत हुए ॥ ८ ॥ गड़म कुल निः समय बनाओस मेवात त्रुम्मन करनेवाली संतान प्राग निया, सन्य मालूम हुआ मानो प्रनिगलिगकी सनक यंत्रीमन सो बुला लिया है ॥ ८१॥ त्रिपिटन निमसाको पहले ही त्रुऑकी सेनाको जहा करने लिये मना या वह मन बादको देखें और जानन उसी समय छोडकल आई और हाय नाडकर इस ताह बोली ॥२॥"प्रतिम्टान्न अंग बनानाले जनय क्रयवाको पहा हुए विवावर गनाओंक साय माय आनी ममन्नमवातं. मुसजित कर यह बयान अश्वग्रीन बड़े गले नि:शंक होकर उठा है।। ८३॥ आपके प्रसाइ विचाया रानामांकी समस्त विधाओंजा पहले ही छैन कर दिया गया है । निक पंख काट डाले गये है. ऐसे पतिराजोंकी तरह अत्र उनको कौनया मनुष्य युद्धमें नहीं पड़ सकता ? ॥ ८2 | इस प्रकार पोन्मत्त भ्रमर जिनार भ्रमश कर रहे हैं ऐसे पुष्पोंकी दृष्टि दोनों हायोंसे त्रिपिक शिर करती हुई वह देवता कान पासमें शत्रु सेनानी सन यानु बताकर चुप हो गई ।। ८५ ॥ किंतु स्वयं अपराजित मंत्री अजित से विजयकी जयके लिये वह देवता बड़ी भारी दिन्यत्रीक धारण
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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