________________
१०४ ]
··
महावीर त्रि ।
ܡܐܩܨ ܐܘܘ ܚܕ
को जल में स्नान कराकर जहाँ सेना पड़ी हुई थी उसके पास ही सघन वृक्षोंमें बांध दिया ॥ ९२ ॥ पीनेकी विदुओ जिनका मारा शरीर भर रहा है, तथा जिनके करते जीन उतार लिया गया है, ऐसे श्रेष्ठ घोड़े जमीनपर लोटकर खड़े और इंट जल्ट में अवगाहन - स्नान कर तथा जल पीकर बंधे हुए विश्राम न लगे ॥ ९३ ॥ रामालोग भी हाथिओंकी सवारी छोड़ मर करनेके लिये जमीनपर बिछी हुई गाडियोंपर लेट गये । और लोग तावृक्षके पंखा हवा करके उनका पीना
॥ ९४ ॥ उटके ऊपरसे हथियारोंका बोझा उतारो। इम जोनको साफ करो | ठंडा पानी लाभो, महागजक रहने की उम जगहको डेरेको उखाड़कर इसके चारों तरफ कनात लगाकर इसे फिरसे सुधारी,. यहां से रथको हटाओ और घोडेको धो, बैंकोंको जंगल में लेमाओ तू बाम के लिये जा, इत्यादि जो कुछ भी अधिकारियोंन- हाकिमों: ने आज्ञा की उसको नौकरलोग बड़ी नल्दीसे पूरा करने लगे 1. क्योंकि सेवक स्वतन्त्र नहीं होना ॥ ९१-९६ ॥ राजाओंकी अद्वितीय शनियां भी, जबकि उनकी परिचित परिचारिकाओं - दासियोंने अपने हाथके अग्रभागों - अंगुलियोंसे दावकर उनकी सवारीकी धकावटको दूर कर दिया, तब स्वयमेव सम्पूर्ण दैनिक कर्मको अनुक्रमसे करने लगीं ॥ ९७ ॥ जिसपर अत्यंत प्रकाशमान : तोरणकी शोभा होरही है ऐसा यह महाराजका निवासस्थान है - इसकी पहचान गरुड़ के झंडेसे होती है । यह विद्याधरोंके स्वामीका हेरा है जिसने कि नानाप्रकारके विमानोंके ऊपरी भागसे - शिखरोंसे tat Ht भेद दिया है। यह क्रय विक्रयमें तल्लीन हुए बड़े २
"