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१०२ ] . महावीर चरित्र.
wwwmirmianmorerminis कुदाया और वह भी निशंक होकर कूद गया, ठीक ही है-जातिक अनुसार चेष्टा हुआ करती है ॥ ७८ ॥ निसको खोटी शिक्षा मिलती है वह विपत्तियोंका ही स्थान होता है। देखिये नं बुरी तरह शब्द करनेवाले-हिनहिनानेवाले घोड़ेने बारबार उछलकर अपने सवारको नवीन गेंदकी तरह ऐसा पटका कि जिससे उसका सारा शरीर घायल होगया ॥ ७९ ॥ गोरसोंकी-धी-दूध दहीकी खूब भेट करनेवाले, मर्दित-दाय चलेहुए धान्यको लिये हुए.किमा-. नोंने मार्ग में भूपालको देखा, जो कि जोर जोरसे यह कह रहे थे कि कोटयों राजाओंसे वेप्टिन यह प्रजापति-राजा अपने पुत्रों सहितः रक्षा-जगतका शासन करो। सब जगहसे शहरके लोग भी. आश्चर्यके साथ उसकी सेनाको देखने लगे ॥८०-८१॥ ध्वना ओंकी पंक्तिको कंपानेवाली, झरनाके नल-कणोंको धारण कर-:: नेवाली हस्तियों के द्वारा तोड़े गये अगुरु वृक्षोंकी सुगंधसे सुगंधिता हुई पहाड़ी वायु उसकी सेनाकी सेवा करने लगी ।।८२॥. अटवि: योंके-नियों के स्वामी भी वनमें इससे आकर मिले और मिलकरः बहुतसे हाथीदांत चामरोंसे जिनमें कि कस्तूरी कुरङ्गक भी रक्खाः गया है उसकी आदरसे सेवा करने लगे ॥ ८३ ॥ प्रत्येक पर्वतपर अंजनपुंनकी शोभाको उत्पन्न करनेवाले, सेनाको देखकर भयसे 4-: .लायन.करनेवाले हाथियोंको क्षणभरके लिये इस तरहसे देखा.मानों.
ये नंगम-चरते फिरते अन्धकार-समूह ही हैं ॥८४॥ जिनका देखना : मात्र सत्कल है, जो पीन (कठोर और उन्नत तथा स्निग्ध) पयोधरों. (स्तनों, दूसरी पक्षों मेघों ) की श्रीको धारण किये हुए हैं, जिनके पत्रोंके ही वस्त्र हैं ऐसी भीलिनियों और पहाड़ी नदियोंकों