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१०. ] . . महावीर चरित्र ।
mmmmmmmmmmmmmmninin हुई ध्वजाओंके समूहसे केवल आकाश ही नहीं ढका; किंतु दूसरे राजाओंके लिये अत्यंत दुःसह चक्रवर्तीका समस्त - तेन .मी .ढक · गया ॥६३॥ रथोंके अंडोंकी टापोंके पड़नेसे पृथ्वीमें जो, गधेके बालोंकी तरह धूलि उठी उससे केवल समस्त जगत ही मलिन नहीं. हो गया; किंतु.शत्रुका यश भी उसी समय मलिन हो गया।६४॥ गुरु सेनाके भारसे पीड़ित होकर केवल पृथ्वी ही चलायमान नहीं हुई; किन्तु पवनके मारे मूलमेंसे ही उखड़ जानेवाली लताकै समान शत्रुके हृदयमेंसे लक्ष्मी भी चलायमान हो गई ॥६५॥ उम समय जिनसे मदनलकी झड़ी,चुचा रही थी फिर भी जो पीलवानों के वश थे और इसीलिये जिन्होंने अपनी रोष-क्रोध-वृत्तिकों दूर कर दिया था, ऐसे मदोन्मत्त हस्ती क्रीडासे लालित्यको दिखाते.. हुए निकले ॥६६॥ बिजलीके समान. उज्जल सोनेके भूषणोंकों धारण करनेवाले, जिनके गलेमें चमर चंचल हो रहे हैं; एवं : नों. इतनी जल्दी चलते थे कि.निमसे यह नहीं मालूम पड़ सकता कि इनके चरणोंके बीचमें विलम्ब भी लिया या नहीं, घुड़सवार ऐसे घोड़ोंपर चढ़. २ कर निकले ॥६७॥ दूसरे देशोंके राजा मी . यथेष्ट वाहनोंपर चढ़कर, श्वेतछत्रसे आतापको दूर कर, गमनके योग्य मेषको धारणकर उसके पीछे २ निकले ॥६८॥ रज, सेनाकी धूलि: के भयसे भूतलको.छोड़कर आकाशमें चला गया। वहां व्याकुल होकर संबसे पहले उसने विद्याधरकी सेनाको घेरकर ढक दिया ii६९| परस्परमें एक दूसरेके रूप, भूषण, स्थिति, सवारी आदिके देखने में उत्सुक दोनों सेनाएं आकाशमें चिरकालं तक अधोमुख और उन्मुख रहीं। अर्थात प्रजापतिकी सेना उन्मुख और विद्याधरकी सेना.