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श्रीगुणचंद महावीरच० ३प्रस्तावः
सणा। जहा
15 ॐ
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चरणकमलं उबविठ्ठो सन्निहियभूमिभागे, गुरुणाऽवि पारद्वा महुमहणापृरियपंचयण्णरवाणुकारिणा सरेण धम्मदे-18 संभूति
रुपदेशः संसाररंदरंग सइलूसेहिं व चित्तरूवेहि । सो नत्थि किर पएसो जीयेहि न नचियं जत्थ ॥१॥ चउगइजलपडलाउलभवण्णवेऽणेगसो करेंतेहिं । दुहिएहिं मजणुम्मजणाई कुम्भेहि व कहिंपि ॥ २॥ आरियखेत्तुष्पत्ती नो पाविजइ पभूयकालेऽवि । तीएवि हु पत्ताए कहिंचि कम्मक्खओवसमा ॥३॥ धम्मत्थकामसाहणकारणमेगंतियं न मणुयत्तं । पार्वति पावविहया ममगाणा विविजोणीम् ॥ ४॥ लद्धेऽवि तत्थ जरकाससासकंडूपमोक्खदुखेहि । निहयाण धम्मकम्मुजमोऽवि सुरेण वजा ॥ ५ ॥ नीरोगचे पत्तेऽवि रुद्ददारिदविहुयसरीरा । उदरभरणत्थवाउलचित्ता वोलिंति नियजीव ॥६॥ इस्सरिएऽविहु वहुदविणवद्धणारद्वविविहवावारा । लोभेण भोयणपिट काउंन तरति बेलाग ॥ ७॥ संतोसेणवि मिच्छत्तपंकपसरेण मइलमइविभवा । सबष्णुमर्ष सम्म भुयंति नेवावजुज्झति ॥ ८ ॥ सव्वण्णुधम्मबोहे जाएऽवि हु कम्मपरिणइवसेणं । नीसेसगुणावासो गुरुविन कर्हिषि पडद ॥९॥ लद्धेऽवि गुरुमि समत्थवत्थुवित्थारपयडणपईवे । सिद्धिपुरपरमपयवी ज पयाद तहवि विरहगई ॥ १०॥ | तीएवि तिक्खबहुदुक्खलक्खनिरवेक्खकारणं पावो । पसरंतो न पमाणो खलिउं तीरेइ वणकरिव ॥ ११ ॥
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॥३७॥