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कयं जहाइटुं, वुत्यो य तत्य । अह तस्स चेव दिणस्स पच्छिमनिसाए साइरिक्खंमि वढमाणंमि तीसइंवरिससंख केवलिपज्जायं परिपालिऊण कयछट्टतयोकम्मो पलियंकासणसंठिो भयवं महावीरो सवसंवररूवं सेलेसिं जावजवि 5 न पवजइ ता असंभमुन्भंतनयणनलिणीवणेण तकालुग्गमंतभासरासिळूरग्गहविभावियजिणसासणोवपीडेण सबहुमाणं विनत्तो सक्केण
भयवं! कुणह पसायं विगमह एवंपि ताव खणमेकं । जावेस भासरासिस्स नूणमुदओ अवक्कमइ ॥ १॥ जं एयस्सुदएण तुम्हं तित्थं कुतित्थिएहिं दढं। पीडिस्सइ सक्कारं न तहा पाविस्सइ जणाउ ॥ २॥ न य तुम्हे असमत्था एवंविहकजसाहणे जेण । जो तोलइ तइलोकं बलेण का तस्स इह गणणा १ ॥३॥ तथा-कहऽणंतसत्तिजुत्ता जिणा हवंतित्ति वयणमवि अम्हे । पत्तिजिस्सामो पहु! जइ न तुमं ठासि खणमेकं ॥४॥
अह जयगुरुणा भणियं सुरिंदं ! तीयाइतिविहकालेऽवि । नो भूयं न भविस्सइ न हवइ नूणं इमं कजं ॥ ५॥ के आउकम्मविगमेऽवि कोवि अच्छेज समयमेत्तमवि । अचंताणतविसिहसत्तिपमारजुत्तोऽवि ॥६॥ अवि जोडिजइ सयखंडियंपि वयरागरुब्भवं रयणं । परिसडियमाउदलियं न उ तीरइ कहवि संघडिऊं ॥ ७ ॥ ता जइ अच्चतमभूयमत्थमम्हे न साहिमो एयं । किं एत्तिएण नाणंतसत्तिणो ? मुयसु ता मोहं ॥ ८ ॥ इयं वोहिऊण सक्कं सेलेसिं जयगुरू समारुहिउं। समगं चिय वेयणियाउनामगोत्ताई खविऊण ॥९॥
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