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श्रीगुणचंद महावीरच
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ख्यान
वणदुद्रुमक्कडी तडतडत्ति पुच्छच्छडाहिं ताडती । तत्तो विडवियमुही नीहरिया घुरुहुरंती सा ॥ ४ ॥ जुम्मं । आ कीस चंदवयणे ! करेसि रोसंति वाहरंतो सो। चुंबणवंछाए मुहं तदभिमुहं जाव संठवइ ॥५॥ पढमं चिय ताव तडत्ति तोडिओ तिक्खदसणकोडीहिं । तीए नासावंसो मूलाओ चिय समग्गो सो ॥ ६ ॥ | कथायाँ तयणंतरं च अइतिक्खनक्खनिवहेण दारियं अंगं । आमूलाओ उम्मूलियावि सवणावि से ताए ॥ ७ ॥ अणिवारियपसराए एवं तीए हणिजमाषेण । तेण भयकंपिरेणं वाहरियं गुरुसरेणेवं ॥८॥ रे रे धावह सिस्सा! उग्घाडह मंदिरस्स दाराई । एस पिसाईएँ अहं निजामि जमस्स गेहम्ति ॥ ९॥ इय एवं वाहरंतो भयवससंखुद्धमाणसो धणियं । तायारमलभमाणो नहदंसणुल्लिहियसवंगः ॥ १० ॥ रोसुक्कडाए वणमक्कडीए पुणरुत्तधुरुहुरंतीए । तह विणिहओ वरागो जह सो पंचत्तमणुपत्तो ॥ ११ ॥ अह उग्गयंमि दिणयरे समागया तस्स सीसा, कया तेहिं सहा, न देइ सो य पडिवगणं, तो विहाडियाई । कवाडाई, दिह्रो विणट्ठजीओ सुहकरो, सावि वणमक्कडी उग्घाडिएसु कवाडेसु पलाइण गया जहागयं, सीसेहिवि अमुणियपरमत्थेहिं को सुहंकरस्स सरीरसक्कारो।
॥३०९ इय भो कुमार! विसयाउराण अप्पुनवंछियट्ठाणं । निवडंति आवयाओ पयर्डचिय जेण भणियमिमं ॥ १ ॥ सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा । कामे पत्थेमाणा, अकामा जंति दुग्गई ॥ २॥ .
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