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श्रीगुणचंद महावीरच०
॥२९॥
गोयममुणिणा भणियं जइ एवं ता जिणिंद ! सबाई । सोदाहरणाई कहेह ताई भेएहिं जुत्ताई ॥ २३॥ न तुमाहितो अन्नो भयवं एवं निर्देसिउं सक्को । जं सर्व सूरोचिय पयासिउं पभवए गयणं ॥ २४ ॥ इय वुत्ते सिरिवीरेण धम्मपासायमूलखंभेण । भणियं गोयम ! निसुणसु सबमिमं परिकहिजंतं ॥ २५॥ पंच उ अणुवयाई गुणवयाई च होति तिन्नेव । सिक्खावयाई चउरो विरईए गिहत्थलोयस्स ॥ २६ ॥ तत्थ य अणुवयाई पढम पाणाइवायवेरमणं । वयमवरवयपहाणं पाणाइवाओ य सो दुविहो ॥ २७॥ विन्नेओ बुद्धिमया सुहुमो थूलो य तत्थ पुण सुहुमो । एगिदियजियविसओ थूलो बेइंदियाइगओ ॥ २८ ॥ संकप्पारंभेहिं दुविहो थूलो य तत्थ संकप्पो । होइ हु उवेचकरणं आरंभो पयणकिसिपमुहे ॥ २९ ॥ संकप्पोऽवि य दुविहो अवराहकरंमि निरवराहे य । जो हरइ देव(ह)दवं स सावराहोऽनहा इयरो ॥ ३० ॥ एवं नाऊण इमं थूले अवराहविरहिए जीवे । संकप्पओ न घाएज दुविहतिविहाइभेएण ॥ ३१ ॥ इय गहियजीववहविरइसुंदरो सावगोऽणुकंपपरो । अबंत कोवेऽवि हु गोमगुयाईग न करेजा ॥ ३२ ॥ बंधवह छविछेयं अइमारं भत्तपाणवोच्छेयं । एए पंचऽइयारा जम्हा दूसंति वहविरई ॥ ३३॥ एयाए दूसियाए विहलो सवोऽवि धम्मवावारो । कट्ठाणुट्ठाणपिवि निरत्थयं रनरन्नंव ॥ ३४ ॥ जं पाणिवहासत्तो सत्तो तं किंपि पावमायरइ । जेण निमेसंपि सुहं न लहइ नरयाइसु गइसु ॥ ३५ ॥
॥२९२॥