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HERWIRELAT
*-05- 2066RESS
तिपयाहिणिऊण परेण भत्तिभारेण वंदिउं नाहं । सहाणेसु निसीयंति ते य सद्धम्मसवणत्थं ॥ १० ॥ उप्पायपलयसत्तासमलंकियसयलवत्थुपरमत्थं । भवाणं भवभयहरं तत्तो वागरइ भुवणगुरू ॥११॥ वागरमाणस्स य भुवणबंधुणो मुणियसयलभावोऽवि । भवजणवोहणत्थं गोयमसामी इमं भणइ ॥ १२ ॥ भयवं! भवस्स पुणरुत्तजम्मजरामरणसोगपउरस्स । किं मूलकारणं जमिह नेव जीवा विरजति ॥१३॥ न य उजमंति तुह पायपउमपूयणपमोक्खवावारे । नो देससबविरइओ भावसारं च गिण्हति ॥ १४ ॥ भणियं जिणेण गोयम ! मिच्छत्तं अविरई य मूलमिह । तदणुगया नो जीवा भवभमणाओ विरजंति ॥ १५ ॥ नो बहु मन्नंति जिणाहिपि गिव्हंति नेव विरईपि । मिच्छत्तमजमत्ता किं वा कुवंति नोऽकजं ? ॥ १६ ॥ जइ तेवि कम्मगंठिं सुनिट्ठरं भिंदिऊण सम्मत्तं । पावंति कहवि ता भवसंवासाओ विरजंति ॥ १७ ॥ अन्भुजमंति जिणसाहुपूयणाइस्मि धम्मकजंमि । नवरं तेऽवि न विरई घेत्तुं पारैति कम्मवसा ॥ १८॥ जं देसओवि सविसेसकम्मक्खयउयसमेण सा होइ । किं पुण पहाणयुणिजणकरणुचिया सबओ चेव ॥ १९ ॥ ता गोयमेण भणियं भयवं ! सम्मत्तरयणलाभाओ। अमहियं गुणठाणं एवं सइ विरइभावोऽयं ॥ २०॥ ता साहेसु जयगुरु! पउरगेहवावारवावडमणाणं । संभवइ देसओविहु विरई कहमिव गिहत्याण ? ॥ २१॥ तो जयगुरुणा कहियं पंचण्हं तिण्ह वा चउण्हं वा । गहणे वयाण एगस्स वावि सा होइ निदोसा ॥ २२ ॥
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