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श्रीगुणचंद | महावीरच
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८प्रस्ताव
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किंवा काही तंपिवि चारित्तावारगं मम कम्मं । कु(दोस्सीलसंगरहियस्स गाढतवसोसियंगस्म ॥ ३१॥ इय तवयणं अवमण्णिऊण सिग्धं गओ समोसरणं । नवरं जयगुरुणाविहु पडिसिद्धो सो तहथेव ॥ ३२ ॥ तहविहु अइरभसवसा अभाविउं भाविरं विरइभंग । भुवणगुरुणो समीचे निवजं लेइ पवजं ॥ ३३ ॥ तो छठ्ठठ्ठमपमुहं कुणमाणो दुकरं तवचरणं । जयगुरुणा सह विहरइ बहिया गामागराईयु ॥ ३४ ॥ पढइ विचि(वि)त्तं सुत्तं परिभावइ निश्चमेव य तदत्थं । गुरुणो मूले निवसइ परीसहे सहइ थिरचित्तो ॥ ३५॥ संजमनिसेवणपरो विसयविरागं परं परिवहतो । आयावइ अणवरयं सुसाणसुन्नासमाईसु ॥ ३६॥ अह अन्नया कयाई एगल्लविहारपडिमपरिकम्मं । काउमणो स महप्पा जाए छहरम पारणगे ॥ ३७॥ मिक्खटाए पविटो एगोऽणाभोगदोसओ सहसा । वेसाए मंदिरंमी पयंपए धम्मलाभोति ॥ ३८ ॥ तो वेसाए सहासं सवियारं जंपियं अहो समण! । मोत्तूण दम्मलाभ न धम्मलाभेण में कजं ॥ ३९ ॥ अहह कहं हसइ ममंपि बालिसा संपयंपि(ति) चिंतित्ता । तेण तवलद्धिणा नेवतणयमायड्डिऊण लहु ॥४०॥ अइपवररयणरासी निवाडिया एस दम्मलाभोत्ति । भणिऊण य नीहरिओ तीए भणिओ य साणंदं ॥४१॥ भयवं! उज्झसु दुक्करतवचरणं कुणसु मज्झ सामित्तं । इहरा चएमि जीयं पुणरत्तं तीए इय वुत्तं ॥ ४२ ॥ भावियमईवि तवसोसिओऽवि विनायविसयदोसोऽवि । कम्मवसा भग्गमणो पडिवजइ तीए सो वयण ॥४३॥
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