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श्रीगुणचंद महावीरच०
७ प्रस्तावः
॥ २३३ ॥
सो चिंति पवत्तो भिक्खाकालेऽवि नीइ जन्न पहू । पडिमोवगओ चिट्ठह तं अज्जुववासिओ गन्ने ॥ १२ ॥ जड़ कलंमि य कलाणवल्लिकंदो करिज पारणयं । एसो भयवं मह मंदिरंमि ता सुंदरं होइ ॥ १३ ॥ इय चिंतंतो पइवासरंमि सो पज्जुवासए सामिं । ता जाव चउम्मासक्खमणं पचंतमणुपत्तं ॥ १४ ॥ तो बी वासरे आगमि मुणिऊण पारणगसमयं । सामिं निमंतइत्ता तुरियं गेहं गओ सेडी || १५ || पगुणीक याई तेण यसनिमित्तं पुचकालसिद्धाई | फासुयएसणियाई भत्तीए पवरगोजाई ॥ १६ ॥ या अज्ज जयंबंधस्स दाहामऽहंति कयबुद्धी । अणिमिसवियसियनयणो जयगुरुमग्गं पलोयंतो ॥ १७ ॥ धन्नो कयपुन्नोऽहं सुलद्धनरजम्मजीवियफलो य । होहामि अज्ज नूणं तिहुअणपहुणो पर्यााणेण ॥ १८ ॥ चिरभवपरंपरज्जियनिविडासुहकम्मनिगडजडिअस्स । संपजइ जड़ परमजमेव मोक्खो धुवं मज्झ ॥ १९ ॥ इय चिंततो सुविसुज्झमाणलेसो स जायए जाव | ताव पविट्ठो सामिय अहिणव से हिस्स हमि ॥२०॥ अञ्चतविभववित्थरदप्पगवेण सेट्टिणा तेण । भणिया दासी भद्दे ! समणं दारं विसजेहि ॥ २१ ॥ ती विहु तचयणाणुरोहओ चट्टएण कुम्मासा । उवणीया दाणत्थं पहुणावि पसारिओ पाणी ॥ २२ ॥ खित्ता य तीए तयणंतरं च देवेहिं दुंदुही पहया । परिमुक्का वसुहारा लक्खेवो कओ इति ॥ २३ ॥ घुटुं च अहोदाणं महया सण पंचवन्नाणं । वुट्ठी विहिया कुसुमाण सुरहिगंधुदुराणं च ॥ २४ ॥
जीर्ण श्रेष्ठि
भावना नवश्रेष्ठिगृहे
पारण.
॥ २३३ ॥