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६ प्रस्तावः
वैश्यायनाधिकार,
श्रीगुणचंद ू दिट्ठो य सो रुक्खच्छायाए पडिपुन्नसर्वगोवंगो सस्सिरीओ अक्खयसरीरो वालओ, गहिओ य तेणं, पणामिओ ॐ तिलस्तम्बः महावीरच० नियभजाए, भणिया य एसा - पिए! एस तुह अपुत्ताए पुत्तो होही, सम्मं रक्खिजाहि, गोसे य पगासियं जहा मम महिला गूढगन्भा आसि, सा य संपयं पसूया, दारगो से जाओ, एयस्स चेव अत्थस्स निच्छयनिमित्तं छगलकं वावाइत्ता लोहियगंधो कओ, सा य सूइयनेवत्येण ठाविया, वद्धावणयं च विहियं, सम्माणिओ सयणवग्गो, पसारिया लोयम्मि वत्ता, निवत्तियाई छट्ठीजागरणचंदसूरदंसणियसुहाई किचाई, समुचियसमए ठवियं वेसियायणोत्ति नाम, कालकमेण य पत्तो जुवणं, सावि से जणणी चंपाए नयरीए नेऊण चोरोह विकयनिमित्तं ओडिया रायमग्गे, सुरूवत्तिकाऊण गहिया थेरीए वेसाए, सिक्खाविया गणियाण वेजं । अविय
॥ २१९ ॥
सुरविलयन्भहियविसिद्धरूवसोहग्गपवरलायन्ना । सुरयप्पवंचकुसला वियक्खणा गेयनद्वेसु ॥ १ ॥ उवयारभणियपरिचत्तवोहसमयाणुरूवचेद्वासु । पत्तट्ठा सा जाया लद्वपसिद्धी य नयरीए ॥ २ ॥ दंसणमेत्तेण चिय जणस्स पुत्रं जणे विक्खेवं । किं पुण उब्भडसिंगारसारनेवत्वरुइरा सा १ ॥ ३ ॥
इओ य सो वेसियायणो अत्थोवजणनिमित्तं करेइ विविहवाणिजाई, अन्नया य घयस्स सगडिं भरिऊण वयं ॥ २१९ ॥ सएहिं समेओ गओ चंपानयरिं, तम्मिय समय समारद्धो पुरे महूसवो, पवराभरणरुइरदेहा नियंसियपहाणपट्टणुग्गयचीरंसुवाइवत्था जहिच्छं तियचउग्रचचरेसु रामाजषेण परिगया विठसंति नायरा, ते व दहूण चिंतियमषेण