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श्रीगुणचंद महावीरच ०
५ प्रस्ताव:
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सोऽवि ध्रुवमेयं कजं पसाहइस्सह, दुलहो तुम्हारिसो अतिही, गोभद्देण भणियं -पिए | साहेसु परपत्थणं मोचूण अन्नसुवार्य, पत्थणा हि नाम नरस्स जणेइ मरणसमय निविसेसत्तणं, तहाहि - जायणापयस्स सन्निवायाभिभूयव | पक्खलइ वाणी विगलति विच्छायछायाओ अच्छीओ विगयसोहं हवइ वयणकमलं कंपति अंगाई पर्यटुंति दीह - दीहा उसासा संखुग्भइ हिययति । अविय
तावच्चिय कुमुयमयंक निम्मला विष्फुरंति गुणनि वहा । जाव परपत्यणाकलुस कलेवं न पार्श्वेति ॥ १ ॥ तावश्चिय पूइजर गुरुत्तबुद्धीए परमभत्तीए । जावऽत्थित्तं सतुत्तर्ण व पयडेइ न पुरिसो ॥ २ ॥ तावचिव सुहियणत्तणाई दंसंति निच्छियं लोया । देहित्ति दुहुमक्खर जुयलं जा नेव जैपेई || ३ || देहित्ति जंपिरेण माणविसुकेण वियहीगेणं । धम्मत्यवजिएण य जाएणवि को गुणो तेण ! ॥ ४ ॥ ता अन्नसुवायंतरमहुणा मम दुकरंपि किंपि पिए! | साहेसु पत्थर्णपिड सरमाणोवि हु न काहामि ॥ ५ ॥ इय सा तन्निच्छियमुवलन्भ खणमेगं चिंतिऊण भणिउमारद्वा-अज्जउत्त ! जइ एवं ता अस्थि अन्नो उवाओ, परं बहुसरीरायास सज्जो अचिरकालसाहणिजो य, जइ भगह ता निवेएभि, गोभद्देण भणियं - पिए! को दोसो ?, निवेएहि, तीए भणियं सुणेसु, अस्थि पुवदेसे असंखदेवउलमालाले किया वाणारसी नाम नयरी, तीसे समीवे फुरंतफारभंगुरतरंगा विद्धविशुद्धसलिला हंसचकवाय निहुणोवसोहिया अणवश्यवहंतमहासलिलप्पवाहपूरियरयणागरा गंगा नाम
अर्थार्जनाय गोभद्रस्य श्रवास',
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