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५प्रस्ताव
॥१४७॥
श्रीगुणचंदा अम्ह गिहे तुम्हेहिं कोऽविहु मुक्को उ जो इमो समणो । सो अचंतं नियकज्जकरणपडिबद्धवावारो ॥ १॥
तापसोमहावीरच एयपि नो वियाणइ गोस्वेहिं जहागिहं एयं । पइदिणमुवदविजइ रक्खइ न खणंतरं एगं ॥२॥
पालम्भ किं आलस्सं अहवाऽणुकंपणं अहव होज व उवेहा । निदक्खिण्णत्तं वा न याणिमो तस्सऽभिप्पायं ॥ ३॥ अहवा मुणित्ति गोरूववारणं नो करेति स महप्पा । गुरुदेवपूयणपरा अम्हे समणा न किं होमो? ॥४॥ हे कुलवइ ! जइ रुटोसि अम्ह तं उडवयं हणिजंतं । एएणावि पओगेण वंछसे ता लहुं कहसु ॥५॥ जेण विमुंचामो तस्स संकह को मए सह विरोहो ? । रुटोवि तोसणिजो जो किर को तेण सह माणो? ॥६॥ तुह चित्तवित्तिमवियाणिऊण णूणं मुहा को रोसो। तस्सोपरि अम्हेहिं का वा मूढाण होइ मई १ ॥७॥ श
इय ईसाभरसम्मिस्सकोवदरफुरियअहरमुल्लविउं । दूइज्जंतगमुणिणो कुलवइपासाउ निक्खता ॥ ८॥ TH ते य तहा गच्छमाणे दद्रूण कुलवई सबायरेण वाहराविऊण भणिउमाढत्तो, जहा-भो महाणुभावा! किमेव
परिकप्पह ?, को मज्झ दोसो ?, मए वयंससिद्धत्थरायपुत्तोत्ति कलिऊण एयरस मुणिणो गउरवं कर्म, किं गए एवं
वियाणिय ? जं एसो एवं नियगेहमुवेहिस्सइ, एवं ठिएवि तहा करिस्सं जहा न विणस्सइ तुम्ह आसमो, एत्तो ॥१४॥ 18|मा वहिस्सह संतावं, मा चिंतिजह कुविगप्पजालं, तुम्हाणं अवरो को मम पिओत्ति ?, एवमायन्निऊण जायस-11
तोसा गया ते जहागयंति, कुलवईवि गओ जिणसगासे, दि@ो उडवो निलुत्तपुंखपुडविडओब नाममेत्ताबसेसो,
SISSIRROGEIROSSA
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