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४प्रस्तावः
श्रीगुणचंद रयणी ता अणुजाणह ममं गमणायत्ति, राणावि पिययमाविओगविहुरेण एस चेव अज दीहरनिसाए विणोयकारी | देहिलवमहावारचा हवउत्ति परिचिंतयंतेण भणिओ सो-भह ! वीसत्थो इहेब चिट्ठसु, नियपहाणपुरिसेहिं रक्खावइस्सामि तुह जाण-णिजो जय
वत्तं, जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण पडिवन्नं तेण, विसजिया य राइणा नियपहाणपुरिसा पवहणरक्खणत्यं, एत्यंतरे अन्य ॥ १०५॥ |उट्ठिया दोवि कुमारा, विन्नत्तं च तेहिं, जहा-ताय! अदिट्ठपुवं अम्ह पवहणं, गाढं च कोउयं तदसणे, ता अणु-151
18 जाणउ ताओ जेण गच्छामोत्ति, तन्निच्छयमुवलब्भ अणुन्नाया य नरिंदेण, गया य अंगरक्खनरपरिक्खित्वा ते जाण-14
वत्ते, तं च इओ तओ निरिक्खिऊण पसुत्ता तत्थेव । अह पच्छिमरयणिसमए पडिबुद्धा परोप्परं वत्ता काउभारद्धा, खणंतरेण लहएण भाउणा पटो जेहो भाया-अहो भाय! कहसु किंपि अपुवं अक्खाणयं, इह द्वियाण न झिजइ |
कहमवि विभावरी, जेठभाउणा भणियं-भह ! किमन्नेण अक्खाणयसवणेण?, एवं चिय अण्पणोतणयं अक्खाण-131 दायमपुवं निसुणेहि, तेण जंपियं-एयमवि साहेहि, तो
करकलियकुसुममाला जह जणणी रायमग्गमणुपत्ता । जह बलिया नो पुणरवि जह नयरे मग्गिया बहुसो ॥१1॥ १५ ॥ जह ताओवि दुहत्तो अम्हेहिं समं गओ नईकूले । जह परतीरनिरूवणकएण सलिलंमि ओगाढो ॥२॥ जह सरियनीरपूरप्पवाहिओ दूरदेसमणुपत्तो । जह अम्हे गोउलिएण गोउलं पाविया विवसा ॥३॥ जह बुद्धिं संपत्ता रायउले जह गया तो अम्हे । रायावलोयणत्थं जह विन्नाया य तारणं ॥४॥
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-OST-964-
02-06-8-SC-950-दीद
बालासारख
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