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दिपराजयः
४प्रस्तावः
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श्रीगुणचंद 181 रण्णा भणियं कह देवि! कहसु खत्तियखयंकरो एस? । मइ जीवंते संपइ, पडिभणइ निवं तो देवी ॥ २२ ॥ घोरशिवमहावीरच० एएण किंपि सिद्धिं समीहमाणेण पावसमणेण । हणिया कलिंगवगंगहूणपंचालपमुहनिया ॥ २३ ॥
दिहिप्पवंचमाइंदजालपमुहेहिं कूडकवडेहिं । अच्छरियाई दावितरण को को न वा नडिओ ? ॥ २४ ॥ न य केणवि एस जिओ न यावि एयस्स लक्खियं सीलं। तुमए उभयपि कयं अहह मई निम्मला तुझ ॥२५॥ इय तुह असरिससाहससुंदरचरिएण हरियहिययाए । मम साहसु किंपि वरं जेणाहं तुज्झ पूरेमि ॥ २६॥
ताहे मउलियकरकमलसेहरं नामिउं सिरं राया । भणइ तुह दसणाओऽवि देवि! अन्नो वरो पवरो ? ॥ २७ ॥ II भणियं सुरीऍ नरवर! इयरजणोच न जइवि पोसि । तहवि तुह वंछियत्थो होही मज्झाणुभावेण ॥ २८ ॥ 18 इय भणिए नरवइणा पराएँ भत्तीऍ पणमिया देवी । लच्छिच पुण्णरहियाण झत्ति असणं पत्ता ॥ २९॥ . IFI नरिंदोऽवि तारिसमचन्भुयं देवीरूवं सहसचिय नयणगोयरमइकंतमुवलब्भ चिंताकल्लोलमालाउलो एवं परि-14
भावेइ-किमेयं सुमिणं उआहु विभीसिया अहवा एयस्स चेव दुट्ठकावालियस्स मायापवंचो किं वा मम मइ-11
विभमो उयाहु अवितहमेयंति ?, 18 इय जाव निवो संदेहदोलमालंबिउं विकप्पेइ । मा कुणसु संसयं ताव वारिओ गयणवाणीए ॥१॥
- घोरसिवोवि मत्तो इव मुच्छिओ इव दढदुषणताडिओ इव महापिसायनिष्फंदीकओ इव मुसियसारवक्खरो इव ।
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