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भीमान जैनधर्मभूषण शीतलप्रसादजीने लिया है तथा इस प्रथकी लेखनकली व उपयोगिता पर अपना उत्तम मत प्रदर्शित किया है। तथा पेरिस्टर साहपने तो इस प्रन्यकी भूमिका भी लिख दी। इससे माम होता है कि ऐसे महत्वपूर्ण अन्धका जैन तो क्या भगेन समाजमें भी विशेष भावर होगा ।
भन्तमें एक बातका उल्लेख किये बिना हम नही हसते कि जब भनेक अन्योंके लेखक प्रन्य तेणर काके उसका मेटर (कोपी) प्रकाशकको मूल्यसे पेच देते है तब बाबू कामताप्रसादजीने इस कार्यको भतीष परिश्रमसे परोपकार के लिये कर दिया है अर्थात थापने भानरेरी तोरसे ही इसका संपादन करके हमको प्रकट करनेके लिये दे दिया है जिसके लिये हम सारी जैन समाज भापकी भतीष भामारी है। अगर ऐसे ही पढ़े लिखे जैन नवयुवक हमारी समाजमें जैनधर्म की प्राचीनता व उत्तमताके विषयों नवीन शैलीपर तुलनात्मक दृष्टिले अन्य निरगे तो जैनधर्मका बड़ा भारी उपकार होगा।
इस प्रन्यके संपादन व प्रकाशन कार्य जो कोई दस गई हो उसकी सुचना पाठकवर्ग हमें लिख भेजेंगे तो दूसरी भावृत्तिके समय ससमें संशोधन कर दिया आयगा । हम चाहते है कि इस अन्यका प्रचार हमारोकी संख्या में हो इसलिये जैन समाजसे अपील करते है कि उसे इसकी भनेक प्रतिय खरीद करके इसको भजन समाजमें मुफ्त भी बांटना चाहिये । इत्पलम् ।
पीस. २४५. ज्येष्ठ सुदी५ ता०७-1-२४
मूलचंर किसनवास कापड़िया,
प्रकाशका