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ओपनसे प्राप्त प्रगट शिक्षाएँ। २६५ आत्माओं के कल्याणकारी कार्योंके करनेमें कर्तव्यशील होना हमारा कर्तव्य झलकता है। संसारमें बढ़े हुए त्रासको हटानेके प्रयत्न करना सार्वभौमिक धर्म प्रकट होता है। मानव समाजमें चहुं ओर दुःखदर्दके क्रन्दननाद होरहे हैं। त्राहि त्राहि मच रही है । उसे भगवानके पावन चरित्रसे अपने स्वरूपका भान लेना चाहिए।
और आपसी विद्वेष और स्वार्थवासनाओंको हृदयसे दूर हटाना चाहिए। सारे संसारके जीव अपने समान हैं, उनके स्वत्व भी और जीवन कर्तव्य भी हमारे समान हैं। इसलिए उनसे प्रेम पूर्ण सहयोग करना मनुष्योंका कर्तव्य है। भगवान महावीरके पवित्र जीवन और दिव्योपदेशसे हमें उत्कृष्ट साम्यभावकी शिक्षा मिलतीहै। जिसका मिलना स्वाभाविक है क्योंकि भगवान महावीर अपने मानव जीवनमें ही परमात्म पदको पाचुके थे। उनकी शिक्षासे हमें विश्वप्रेम' का पाठ मिलना अनिवार्य है। किसी भी धर्म, किसी भी जाति, किसी भी योनिका जीव क्यों न हो वह हमारी घृणा और द्वेषका पात्र नहीं है । भगवानका उपदेश हमको सर्वसे मैत्री करने और सर्वको अपनी उन्नति करनेको समान अवसर प्राप्त करनेमें सहायक होनेकी शिक्षा देता है। वह आपसी धार्मिक, साम्प्रदायिक वा अन्य प्रकारके विद्रोहको मानव हृदयसे दूर हटा देता है। भगवान महावीरके समयमें इस भारतवर्षमें सैकड़ों विविध पन्थ प्रचलित थे और वह आपसी ऐंचातानीमें व्यस्त थे। भगवानने अपने उपदेशसे इस स्थितिको दूर कर दिया और जनताको यथार्थ सत्यका भान करा दिया, जिसे कि उसने भुला दिया था। उन्होंने विविध मतानुयायियोंके मन्तव्योंकी यथार्थता