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वीर संघका प्रभाव। जिन्होंने जैनधर्मको अपनाया था, इस प्रकार थे-अजातशत्रु, चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, सम्पति, खारवेल, अमोघवर्ष, कुमारपाल और दक्षिण देशके पाण्डया, चोल, गंग आदि वंशोके प्रख्यात राना नैन थे। उनमें एक प्रख्यात् जैन राजाके मंत्री चामुण्डराय जैनधर्मानुयायी सिद्धांत चक्रवर्ति श्रीमद नेमचंद्राचार्यके शिष्य थे। . यह बड़े प्रख्यात् योद्धा और सेनापति थे । क्षात्रधर्ममें अपूर्वता रखनेवाले एक अन्य जैन योद्धा वह थे, जिन्होंने पृथ्वीराजके एक शत्रुकी सेनाके अध्यक्षपनेका भारे अपने सिर लिया था । मेवाड़के सच्चे भक्त, वैश्यकुलदिवाकर भामाशाहका नाम किसीसे छिपा नहीं है। यह ओसवाल जैन थे। अपनी अतुल सम्पत्तिको राणा प्रतापके चरणोमें समर्पितकर यवनोसे पददलित न होने देकर देशकी लान इन्होंने ही बचाई थी। अस्तु, भगवानके उपरान्त संघके प्रख्यात पुरुषोंका एक अलग ही इतिहास बन सका है। इसलिए यहांपर केवल तीन प्राचीन जैन राजाओंका थोड़ासा वर्णन मात्र करेंगे। ___अजातशत्रुके पश्चात् प्रख्यात सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जैन राना हुए थे। वे सन् ई०से ३२२ वर्ष पहिले गद्दी पर बैठे थे। २४ वर्ष तक सुनीतिपूर्वक अपूर्व राज्य करके उन्होंने सन् ई०से २९८ वर्ष पहिले राज्य छोडा था, परन्तु उनके शीत्र मरणका जिक्र नहीं है। इससे जैनशास्त्रोका यह कहना कि चन्द्रगुप्त जैन साधु हुए ठीक है। और वे श्रुतकेवली भद्रबाहुके पीछे १२ वर्ष तक जीते रहे। और ६२ वर्षकी अवस्थामे मृत्युको प्राप्त हुए थे। ____ आपके राज्यका सुप्रवन्ध और उसके फल खरूप सुख सम्पनता इतिहासमे विख्यात है। उनके प्रख्यात मंत्री चाणिक्य ब्राह्मण