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भगवान महावीर। और चैत्य बतलाया गया है। चैत्य वैसा ही तीन महरावोंका संयुक्त तिदरा है; परन्तु इसके ऊपर अर्धचन्द्राकार अवश्य है। यह साफ प्रकट कररहा है कि यह तिदरा बौद्धोंका चैत्य नहीं है। बल्कि इसके कुछ अधिक माने हैं। क्योंकि अर्धचन्द्राकार चिन्ह इसके ठीक ऊपर है। इन चिन्होंका यथार्थ भाव इस प्रकार युक्तिसंगत प्रतीत होता है और वह भगवान महावीरके तीर्थकरपनेकी घटनाका उद्योतन करता है । अर्थात् ताक भगवान महावीरके समवशरणको प्रगट करता है । उसमें जो सिंह है वह इस बातको जाहिर कर रहा है कि तीर्थकर भगवानने जन्म ले लिया है और उनका तीर्थ प्रवृत रहा है । उनका दिव्योपदेश होरहा है क्योंकि हमको मालूम है कि सिंह भगवान महावीरको प्रतिबिम्बका चिन्ह हैं । अस्तु, प्रतिबिम्बके स्थानपर उनका चिन्ह रक्खा गया, निससे अविनय न हो और भाव प्रकट होनाय | भगवानने अपने दिव्योपदेशसे यह प्रकट कर दिया कि जीव और पुद्गलका संबंध है जिसके कारण जीव चतुर्गतिके दुःख उठा रहा है (स्वस्तिका)। इस दुःखसे छुटकारा पानेका मार्ग तीन दरवाजोंकी जुडी हई तिदरीमें ( रत्नत्रय मार्ग) होकर है । उस मार्ग पर चलनेसे जीवके दुःखका अन्त होता जाता है। और वह उस मार्गको पूर्ण करके अपने निजाधाम मोक्ष देश ( अर्धचन्द्राकार )में पहुंच जाता है। जनशास्त्रोमें मोक्षस्थान अर्धचन्द्राकार बतलाया गया है। इस प्रकार इस सिक्केका भी भाव नं० २ के सिकेकी भांति है। और इसका ऐकीकरण भगवान महावीरकी जीवन घटनाओंसे होजाता है। अतः यह सिक्का भगवान महावीरकी पवित्र स्मृतिमें भगवान ऋष