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वीर संघका प्रभाव ।"
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पर लिखते हैं कि "करीब ईसासे पहिलेकी दूसरी शताब्दिमें जब यूनानी लोगोंने अधिकांश पश्चिमीय भारतपर आधिपत्य जमा लिया था तब जैनधर्मका प्रचार उनके मध्य होगया था। और इस धर्मके नायककी मान्यता भी उनके मध्य अधिक थी, जैसे कि बौद्धग्रन्थ 'मिलिन्द पन्हों' के एक कथानकसे विदित है । उस कथानकमें कहा गया है कि १०० योङ्कायों अर्थात् यूनानियोंने राजा मिलिन्द ( मेनेन्डर) से निग्गन्थ नातपुत ( महावीर ) के पास चलनेको कहा और अपने मन्तव्योंको उनके निकट प्रकट करनेके लिए एवं अपनी शकाओंको निर्वृत्त करनेको भी कहा ।" इससे यह भी प्रकट है कि राजा मिलिन्द भी संभवता भगवान महावीरके भक्त थे । अस्तु ।
उस समय के अन्य प्रसिद्ध मतप्रवर्तक भी इस अनुपम सौम्य सान्तवनादायक प्रभावसे वंचित नहीं रहे थे । 'जिनेन्द्रके दर्शनसे बुद्धदेवको उस ज्ञानकी प्राप्तिकी तीव्र इच्छा हुई थी, जिसके विषयमें उन्होंने बड़े चमकते हुए शब्दोंमें कहा है कि वह सर्वव्यापी श्रेष्ठ आर्यज्ञानका महान् और विविक्त दर्शन है जो मनुष्यकी समझमें नहीं आसक्ता । ' *
सर्व भारतवर्ष में भगवान महावीरके पवित्र, पावन, शान्तिउत्पादक तीर्थका प्रचार होगया था । कृतज्ञ भारतने भी भगवानके इस परमोपकारके प्रति कृतज्ञता प्रकाश करने हेतु उनके निर्वागोपलक्षमें एक जातीय त्यौहार कायम कर दिया । भारतकी सन्तानको साक्षात् ऐक्यका पाठ पढ़ा दिया । और जतलादिया कि यथार्थ
* देखो वैरिष्टाचम्पतरायजीका "गौड़ - खडन" पृष्ट ६०