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२३८ भगवान महावीर । थे, जो कि साधुओं द्वारा कण्ठस्थ रक्खे जाते थे। जैसे २ साधुओंकी स्मरण शक्ति कमजोर पड़ती गई वैसे,२ ही आगम सूत्रोंका लोप होता गया । और उक्त ग्रन्थ पीछेसे किसी अंगघारी मुनिकी स्मृतिसे लिपिबद्ध कर लिए गए। बहुत संभव है कि देवा
गणि क्षमा श्रमणने ही लिपिबद्ध करते समय इनकी रचना उक्त, प्रकार की होगी। और यह भी ध्यान में रखनेकी बात है कि उस समय भारतीय विविध धर्म सम्प्रदायोमें आपसमें खूब प्रतिस्टदा चल रही थी। इसलिए उस समयके गति प्रवाहके प्रभावसे यह ग्रन्थ अछूते न बचेहोंगे। उनमें प्रतिपक्षी सम्प्रदायोके ऊपर वार वाण जरूर छोड़े गए होंगे। .. . ____ अस्तु, सबसे पहिले श्वेताम्वर सम्प्रदायने भगवान महावीरके चरित्रमें भगपानके गर्भापहरणकी बात लिखी है कि सुनन्दा ब्राह्मणीके गर्ममेंसे भगवान त्रिशला क्षत्रियांणीके गर्भमें पहुंचा दिए गए परंतु जिस समय कल्पसूत्र संभवता रचा गया था (विक्रम, संवत्के बहुत वर्षों बाद) उस समय ब्राह्मणोंसे जैनियोंकी प्रतिस्पर्धा खूब चडीबडी थी। इसलिए जैनाचार्य ने अपने अन्यमें ब्राह्मणोंकी । प्रतिस्पोके कारण इस कथाकी उत्पत्ति की जैसे कि प्रोजैकोबीने भी व्यक्त किया है और जो स्वाभाविक थी, क्योकि भगवान महावीरस्वामी के जन्मकालके पहिलेसे ब्रामण द्वेषभरी दृष्टि से देखे जाने लगे, जैसा कि हम पहिले देख चुके हैं। इसका कारण वही था कि स्वयं बाह्मणोंने भी अपनी, प्रधानताको आस्लान पर चढ़ा दिया था और अन्य वर्गाको वे विल्कुल हीन प्टिो देखते थे जैसे कि मनुस्मृतिके निम्न श्लोकोंसे व्यक्त है: