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'भगवान महावीर |
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सक्के और सारभूत कारणके अभाव में इस विषयके दिगम्बर कथानकोंपर अविश्वास नही किया जाराक्ता है। हॉ. ! यह अवश्य | कि दिगंबर कथानकोंसे श्वेतांबर संप्रदायकी उत्पत्तिके समयमे किसी प्रकार संशय प्रकट हो जाता है तो भी बहुतसे आधुनिक 'विद्वान' इस समयको निश्चित करते हैं जैसे कि मि० एम. एस. रामास्वामी ऐयंगर एम. ए. अपनी 'South Indian Jainism' नामक पुस्तकके पृष्ठ २९ पर इस पृथक् होनेके समयको अनुमानतः सन्' ८२ ई० लिखते हैं ।
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बौद्ध ग्रन्थके उपर्युल्लिखित वणनकी कि भगवान के निर्वाण प्राप्ति के उपरान्त ही वीर संघमे मतभेद खड़ा होगया था असंत्योक्ति इस तरह भी प्रमाणित होती है, क्योंकि एक अन्य वौद्ध ग्रन्थ ' "माज्झिमनिकाय" भाग २ पृष्ठ १४३ पर निम्न उल्लेख है:--
“एकम् समयम् भगवा शकेषु विहारति सामगामे । तेन खो, पण समयेण निम्गन्यो नातपुत्तो पावायम् अधुना कालकत्तो होति । तरस कालक्रियाय मिन्न निग्गन्थ द्वेधिकजाता, भन्डन जाता कलह 'जाता विवादापन्ना अण्णमण्णम् सुखसन्तीहि वितुदन्ता विहारिन्ता ।", इससे यह प्रगट नही होता कि म० बुद्धके जीवनकालमें
ही, जिनकी मृत्युके पहिले भगवानको मोक्षलाम होगया था,
जैन संघमें दो भेद होगए थे। यहांपर बतलाया गया है कि
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म० बुद्धने सामगामको जाते हुए मार्ग में स्वयं भगवान महावीरका
निर्वाण होते पावामें देखा था । इसमें, आनन्दकी 'खबर पहुचाने
और म० बुद्धके उपदेश देनेका कोई उल्लेख नहीं है । इससे
प्रगट है कि भगवानकी निर्वाण प्राप्तिके साथ ही संघ में मतभेद
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