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भगवान महावीर। दूप्य वस्त्र धारण किए थे, इसके बाद उन्होंने उसका भी त्यागकर दिया था, अर्थात पिछली अवस्थामें वे नंग्न रहे थे, परन्तु उसका -यह कथन मिथ्या है। क्योंकि हम उपर सिद्धकर चुके हैं कि दिगम्बर भेष प्राचीन है। उधर खयं कल्पसूत्रमें स्वीकार भी किया है कि पीछे वे अचेलक (वस्त्ररहित) होगए थे। :"भगवानके समयवर्ती आजीवक आदि (बल्कि प्राचीन आनीवक भी) सम्प्रदायके साधु-मी नग्न ही रहते थे। पीछे जब-दिगम्बरीवृत्ति साधुओंके लिए कठिन प्रतीत होने लगी होगी और इसलिए देशकालानुसार उनके लिए वस्त्र रखनेका विधान किया गया होगा, तब यह देवदूप्यकी कल्पना की गई होगी । भगवान रहते
ये नग्न, पर लोगोंको स्त्र सहित ही दिखाई देते थे, श्वेतांबर सिम्प्रदायके इस अतिशयका फलितार्थ यही है कि भगवान नम दो बड़ी खास बात पाई जाती है तपा जो बातें जैनियोंकी सबसे प्राचीन पुस्तकों पुराने इतिहाससे ठीक २ मिलती है वे ये है कि-एक तो उनमें दिगम्बर मुनियों का होना और दुसरे पशु. मांसका सर्वेया निषेध" इन दोनों से कोई बात भी प्राचीनकालके ब्राह्मणों और बौदोंमें नहीं पाई जाती है। क्योंकि दिगम्बरं समाज प्राचीनकालसे अबतक बराबर चली भारही है। इससे मैं यही तात्पर्य निकालता हूक पश्चिमीय भारतमें जहां दिगम्बर जैनधर्म अब भी फैला है जो जैन सूफी ( Gymnosophists ) यनानियोंको मिले ये वे जैन थे।" दिगम्बर श्वेतांबरका उल्लेख करते हुए मि० भार० सी०-दस साहब लिखते है कि "मगधके लोग श्वेतवस्त्र पहिनने लगे थे, परन्तु कर्नाटका. पाले भवता भी नगे रहनेकों प्राचीन रीतिको पकडे हुए थे।"देखो' "भारतवर्षकी प्राचीन सभ्यताका इतिहास ") एक अन्य विद्वानका इस विषयमें मत है कि "महावीरजीने यह अच्छी तरह जान लिया था , कि एक पूर्ण साधुके लिए सर्व आकाक्षाओं, खासकर लथापर विजय
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