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भगवान महावीर। कि उसकी मान्यता और भक्ति एक बड़े और गण्यमाण्य मनुष्य समुदायने की थी। वास्तवमें चारित्र संसारमें एक बड़ी वस्तु है। अस्तु।
भगवान महावीरके चारित्रकी उत्कृष्टता और निर्मलताका दिग्दर्शन कराना कोई साधारण कार्य नही है। वे तीर्थकर थे और अन्तमें साक्षात् चारित्ररूप थे। अहंतके छयालीस गुण उनमें विराजमान थे । वे सशरीरी सर्वज्ञ बुद्ध-परमेश थे। परमात्माके सम्पूर्ण गुंण उनमें दृश्य थे। उनका उल्लेख करनेको शब्द पर्याप्त नहीं हैं। परन्तु उनके पवित्र जीवनपर दृष्टि रख इस विषयमें हम निम्नप्रकार कुछ प्रकाश डालेंगे।
कहा जाता है कि महात्माओके चारित्रकी उत्सष्टता प्रकट करनेवाली तीन बातें हैं; अर्थात् शारीरिक बल, मानसिक उत्तमता,
और नैतिक चारित्रकी पवित्रता। अस्तु, हम देख चुके हैं कि भगवान महावीरका शारीरिक बल अनन्त था। उनका शरीर सर्वोपरि उत्कृष्ट और उत्तम था, देखनेमे सुन्दर था और सुवासित था। सति हाथका स्वर्णके वर्णका था जिसके अपरमित बलसे भगवानने मॅत्त होथीको पकड़ लिया था। भगवान जीवनपर्यन्त बीलबहींचारी रहे थे।
भगवानकी मानसिक उछंष्टता इसीसे प्रकट है कि वह जन्मसे ही मति, श्रुति और अवधिज्ञानके धारक थे। और दीक्षांग्रहण करनेके उपरान्त आपको अवशेष मनापर्यय और केवलज्ञानकी प्राप्ति हो गई थी। योग द्वारा आपने ज्ञान प्राप्त किया था, जो अनन्त यथार्थ और सर्वव्यापक था। आप एक बड़े प्रभावशाली अनुपम वा भी थे। मापके मुखसे सदैव यथार्थ